________________
(१३४) धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम् ।.
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का आरोग्य ही मूल साधन है।
२- ब्रहमचर्य से शारीरिक स्वस्थता आत्मा को अपने ध्येय तक पहुंचने के लिये शरीर की आवश्यकता है और वह भी आरोग्यता के साथ । अस्वस्थ शरीर, धर्म-साधन में असमर्थ रहता है। ब्रहमचर्य से इस अंग की पूर्ति होती है, अर्थात् शरीर स्वस्थ रहता है, कोई रोग पास भी नहीं फटकने पाता ।
वैद्यक ग्रन्थों में ब्रहमचर्य से शारीरिक लाभ बताने के लिये कहा --
मृत्युव्याधिजरानाशि, पीयूषपरमौषधम् । ब्रहमचर्य महायत्नः, सत्यमेव वदाम्यहम् ॥
— मैं सत्य कहता हूँ कि मृत्यु, व्याधि और बुढ़ापे का नाश करने वाली अमृत के समान औषध ब्रहमचर्य ही है। ब्रहमचर्य, मृत्यु रोग और बुढ़ापे का नाश करने वाला महान् यत्न है ।'
३-- ब्रहमचर्य से धर्म-रक्षा
तात्पर्य यह है कि वह मचर्य से शरीर स्वस्थ रहता है, जिससे धर्म का पालन होता है । इतना ही नहीं, किन्तु ब्रहमचर्य का पालन करना भी धर्म ही है । यह धर्म का