SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिविध ब्रह्मचर्य १ - ब्रहमचर्य शब्द को प्रवृत्ति का निमित्त , ब्रह्मचर्य' एक ही शब्द नहीं है, किन्तु 'ब्रह्म' शब्द में 'चर्य' कृत प्रत्ययान्त से बना हुआ संस्कृत शब्द है । ब्रह्म + चर्य = ब्रह्मचर्य । ' ब्रह्म' शब्द के वैसे तो कई अर्थ होते हैं, परन्तु यहां यह शब्द वोर्य, विद्या और आत्मा के अर्थ में है । 'चर्य' का अर्थ, रक्षण, अध्ययन तथा चिन्तन है । इस प्रकार ब्रह्मचर्य का अर्थ वोर्यरक्षा, विद्याध्ययन और श्रात्म-चिन्तन है । 'ब्रह्म' का अर्थ उत्तम काम या कुशलानुष्ठान भी होता है, इसलिये ब्रह्मचर्य का अर्थ उत्तम या कुशलानुष्ठान का आचरण भी है । ब्रह्मचर्य शब्द के इन अर्थों पर दृष्टिपात करने से हम इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि जिस आचरण द्वारा आत्म-चिन्तन हो, आत्मा अपने आपको पहचान सके और अपने लिये वास्तविक सुख प्राप्त कर सके, उस आचरण का नाम 'ब्रह्मचर्य' है । इस अर्थ में ब्रह्मचर्य शब्द के ऊपर कहे हुये सभी अर्थ आ जाते हैं । " २ – ब्रहमचर्य की परिभाषा आत्मचिन्तन के लिये, इन्द्रियों और मन पर विजय पाना आवश्यक है । प्राकृतिक नियमों के अनुसार इन्द्रियां
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy