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विशेष ब्रह्मचर्य का पालन करने में असमर्थ रहे, यह एक बात है और यह कहना कि ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना संभव नहीं है, दूसरी बात है । किसी व्यक्ति की असमर्थता के आधार पर किसी व्यापक सिद्धान्त का निर्माण कर बैठना, सचाई के साथ अन्याय करना है। इस प्रकार असमर्थता की ओट में विषयभोगों का प्रचार करना सर्वथा अनुचित है।
आज भी संसार में ऐसे व्यक्तियों का मिलना असंभव नहीं है जो बाल्यावस्था से ही ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जन-सेवा कर रहे हैं । फिर भीष्म और भगवान् नेमिनाथ जैसे पवित्र ब्रह्मचारियों का उच्च आदर्श जिन्हें मार्ग-प्रदर्शन कर रहा हो, उन भारतवासियों के हृदय में न जाने यह भूत कैसे घुस गया है कि विषय वासना पर काबू रखना शक्य नहीं है । साधु हुए बिना ब्रह्मचर्य का पालन हो ही नहीं सकता और गृहस्थ-जीवन में ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान एकदम अशक्यानुष्ठान है !' वास्तव में यह धारणा सर्वथा भ्रमपूर्ण है । मनोबल दृढ़ होने पर पूर्ण या नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है । यही नहीं, वरन् विवाहित जीवन व्यतीत करते हुए गृहस्थ जीवन में भी ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है । ब्रह्मचर्य पालने से किसी भी प्रकार की हानि की सम्भावना नहीं है । यही नहीं, किन्तु अनेक प्रकार के लाभ होते हैं । कहा भी है:
ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः ।
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कुछ महानुभावों ने एक नये सिद्धान्त का आविष्कार किया है । उनकी अनोखी सी समझ यह है कि ब्रह्मचर्य का