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________________ ( १२१ ) बिछौने पर स्त्री पुरुष का शयन करना भी है । एक ही कमरे में और एक शय्या पर सोने से वीर्य स्थिर नहीं रह सकता ं । शास्त्र में जहां स्त्री और पुरुष के सोने का वर्णन मिलता है वहां ऐसा ही वर्णन मिलता है कि स्त्री और पुरुष अलग-अलग शयनागार में सोते थे । पर आज इस विषय में नियम का पालन होता नजर नहीं आता । निष्क्रिय बैठे रहना भी वीर्यनाश का एक कारण है । जो लोग अपने शरीर और मन को किसी सत्कार्य में संलग्न नहीं रखते, उन लोगों का वीर्य भी स्थिर नहीं रह सकता । यदि शरीर और मन को निष्क्रिय न रक्खा जाय तो वीर्य को हानि नहीं पहुंचती । रात्रि में देर तक जागरण करना, सूर्योदय के बाद भी सोते रहना और अश्लील साहित्य का पढ़ना, ये सब भी वीर्यनाश के कारण हैं । अश्लील चित्र देखने से और अश्लील पुस्तकें पढ़ने से भी वीर्य स्थिर नहीं रहता । आज जहां तहां अश्लील पुस्तकें पढ़ने और अश्लील चित्र देखने का प्रचार हो गया है । आजकल लोग महापुरुषों और महासतियों के जीवन चरित्र पढ़ने के बदले अश्लीलतापूर्ण पुस्तकें पढ़ने के शौकीन हो गये हैं । उन्हें यह विचार ही नहीं आता कि ऐसा करने से जीवन में कितने विकार या घुसे हैं । कहावत है कि - 'जैसा वाचन वैसा विचार ।' इस कहावत के अनुसार अश्लील पुस्तकों के पठन से लोगों के विचार भी अश्लील बनते जा रहे हैं । - नाटक-सिनेमा देखना भी वीर्यनाश का कारण है । भाजकल नाटक-सिनेमा की धूम मची हुई है। जहां देखो वहां गरीब से लेकर अमीर तक — सबको नाटक सिनेमा
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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