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ही सन्तान बन जाती है। जिस प्रकार भावना से स्वप्न का - निर्माण होता है, इसी प्रकार भावना से संतान के विचारों और कार्यो का निर्माण होता है । नीच विचार करने से खराब स्वप्न आता है और यही बात संतान के विषय में भी समझनी चाहिए । संतान के विषय में तुम जैसी भावना लागे, श्रागे चलकर संतान वैसी ही बन जायेगी । अतएव सन्तान के लिए और अपने लिए ब्रह्मचर्य की भावना निर तर करनी चाहिए ।
७- दूसरा नियम
ब्रह्मचर्य का दूसरा नियम भोजन - सम्बन्धी विवेक है । कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि जिस खानपान में आनन्द आता है, वही भोजन अच्छा है, पर यह मान्यता भ्रमपूर्ण है । ब्रह्मचारी के भोजन में और अब्रह्मचारी के भोजन में बड़ा अन्तर होता है। गीता में रजोगुणी, तमोगुणी श्रौर सतोगुणी का भोजन अलग-अलग बताया है । पर आज के लोग जिह्वा के वशवर्ती बनकर भोजन के गुलाम हो रहे हैं। यदि तुम अपनी जीभ पर भी अंकुश नहीं रख सकते तो तुम आगे किस प्रकार बढ़ सकोगे ? विद्याभ्यास और शास्त्र श्रवण का फल यही है कि बुरे कामों में प्रवृत्ति न की जाय । आजकल खान-पान के सम्बन्ध में बड़ी भयंकर भूलें हो रही हैं और हालत ऐसी जान पड़ती है मानो विद्याभ्यास का फल खानपान का भान भूल जाना ही हो ।
८-- विनाश के कारण
वीर्यनाश का एक कारण एक ही कमरे में, एक