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________________ ( ११६ ) बनाने वाले साज - सिंगार और हाव-भाव त्याग कर स्वयं ब्रह्मचर्य की साधना करो और पति को भी ब्रह्मचर्य पालन करने दो । ५- ब्रह्मचर्य ही जीवन है अपूर्ण ब्रह्मचर्य केवल वीर्यरक्षा को कहते हैं । वीर्य वह वस्तु है कि जिसके सहारे सारा शरीर टिका हुआ है । यह शरीर वीर्य से बना भी है । अतएव प्रांखें वीर्य हैं । कान वीर्य हैं । नासिका वीर्य है । हाथ पैर वीर्य हैं । सारे शरीर का निर्माण वीर्य से हुआ है, अतएव सारा शरीर वीर्य है । जिस वीर्य से सम्पूर्ण शरीर का निर्माण होता है उसकी शक्ति क्या साधारण कही जा सकती है ? किसी ने ठीक ही कहा है: मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिन्दुधारणात् । ६- - अपूर्ण ब्रह्मचर्य का प्रथम नियम अपूर्ण ब्रह्मचर्य के दस नियमों में पहिला नियम भावना है। माता - पिता को ऐसी भावना लानी चाहिए कि मेरा पुत्र वीर्यवान् और जगत् का कल्याण करने वाला बने। इस प्रकार की भावना से बहुत लाभ होता है । आप लोगों को अलग-अलग तरह के स्वप्न आते होंगे । इसका कारण क्या है ? कारण यही है कि सब की भावना भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है । यह बात प्रायः सभी जानते हैं कि जैसी भावना होती है, वैसा स्वप्न आता है । इसी प्रकार संतानं के विषय में माता-पिता की भावना जैसी होती है, वैसी
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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