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________________ ( ११६ ) । होता है कि वास्तव में उसका अर्थ बहुत विस्तृत है । ब्रह्मचर्य का अर्थ बहुत उदार है अंतएव उसकी महिमा भी बहुत अधिक है । हम ब्रह्मचर्य का महिमागान नहीं कर सकते । जो विस्तृत अर्थ को लक्ष्य में रखकर ब्रह्मचारी बना है, उसे प्रखण्ड ब्रह्मचारी कहते हैं । अखंड ब्रह्मचारी का मिलना इस काल में अत्यन्त कठिन है आजकल तो अखंड ब्रह्मचारों के दर्शन भी दुर्लभ हैं । प्रखंड ब्रह्मचारी में प्रभुत शक्ति होती है । उसके लिए क्या शक्य नहीं है ? वह चाहे सो कर सकता है । प्रखंड ब्रह्मचारी अकेला सारे ब्रह्माण्ड को हिला सकता है । अखंड ब्रह्मचारी वह है जिसने अपनी समस्त इन्द्रियों को और मन को अपने अधीन बना लिया हो - जो इन्द्रियों और मन पर पूर्ण आधिपत्य रखता हो । इन्द्रियाँ जिसे फुसला नहीं सकतीं, मन जिसे विचलित नहीं कर सकता, ऐसा प्रखंड ब्रह्मचारी ब्रह्म का शीघ्र साक्षात्कार कर सकता है । अखंड ब्रह्मचारी की शक्ति अजबगजब की होती है । २ – ब्रह्मचर्य का व्यापक अर्थ परमात्मा के प्रति विश्वास स्थिर क्यों नहीं रहता ? यह प्रश्न अनेकों के मस्तिष्क में उत्पन्न होता है । इसका उत्तर ज्ञानी यह देते हैं कि आन्तरिक निर्बलता ही परमात्मा के प्रति विश्वास को स्थायी नहीं रहने देती । परमात्मा के प्रति विश्वास न होने के जो कारण हैं, उनमें से एक कारण है ब्रह्मचर्य का अभाव । जीवन में यदि ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा हुई तो निस्सन्देह ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धाभाव स्थायी रह सकता है ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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