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ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य शब्द कैसे बना है और वह क्या घस्तु है ? सर्वप्रथम इस बात पर विचार करना चाहिए। हमारे आर्यधर्म के साहित्य में ब्रह्मचर्य शब्द का उल्लेख मिलता है । जिन दिनों अवशेष संसार यह भी नहीं जानता था कि वस्त्र क्या होते हैं और अन्न क्या चीज है तथा नङ्ग-धड़ङ्ग रहकर, कच्चा मांस खाकर अपना पाशविक जीवन यापन कर रहा था, उन दिनों भारत बहुत ऊंची सभ्यता का धनी था । उस समय भी उसकी अवस्था बहत उन्नत थी। यहाँ के ऋषियों ने, जो संयम, योगाभ्यास, ध्यान, मौन आदि अनुष्ठानों में लगे रहते थे, संसार में ब्रह्मचर्य नाम को प्रसिद्ध किया । ब्रह्मचर्य का महत्त्व तभी से चला आता है-जब से धर्म की पुनः प्रवृत्ति हुई । भगवान् ऋषभदेव ने धर्म में ब्रह्मचर्य को भी अग्रस्थान प्रदान किया था । साहित्य की मोर दृष्टिपात कीजिए तो विदित होगा कि अत्यन्त प्राचीन साहित्य-आचारांग सूत्र तथा ऋग्वेद में भी ब्रह्मचर्य की व्याख्या मिलती है । इस प्रकार आर्य प्रजा को अत्यन्त प्राचीन काल से ब्रह्मचर्य का ज्ञान मिल रहा है।
१-बह मचर्य को शक्ति
आजकल ब्रह्मचर्य शब्द का सर्वसाधारण में कुछ संकुचित-सा अर्थ समझा जाता है । पर विचार करने से मालूम