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विशेष कम दाम में मिलना है । जिस वस्तु का बाजार में एक रुपया लगता है, वही वस्तु यदि आठ आने में मिल रही हो तो वह सन्देह होना स्वाभाविक है कि यह वस्तु कैसी है, जो इतनी कम कीमत में बिक रही है । इस सन्देह पर से अनुसन्धान किया जावे तो चोरी की वस्तु होने पर बिना मालूम हुए न रहेगा । संसार में जब कोई किसी वस्तु को बाजार भाव से कम में मांगता है तब वह चीज लाने वाला उस मांगने वाले से प्रायः कहता है कि 'यह चीज चोरी की नहीं है' या कहता है- 'सस्ती चीज लेनी हो तो कहीं चोरी की ढूढो । मतलब यह कि बाजार भाव से सस्ती प्रायः वही चीज मिलती है, जो चोरी की हो । वैसे तो जिसका काम रुका होता है । वह भी बाजार भाव से सस्ती चीज देता है, परन्तु ऐसी चीज इतनी सस्ती नहीं होती जितनी सस्ती चोरी की चीज होती है । इसलिए चोरी की चीज का पहचान में आना कोई कठिन बात नहीं है । वस्तु के विषय में सन्देह हो और जांच करने पर भी उसके विषय में विश्वास न हो तो ऐसी वस्तु को न खरीदना ही अच्छा है। - दबा-छिपा कर बेचने वाले लोगों की चीज के विषय में भी इसी प्रकार का सन्देह हो सकता है । ऐसी वस्तु भी बिना विश्वास किये लेना ठीक नहीं।
दूसरा अतिचार तक्करप्पओगे या तस्करप्रयोग है । इसकी व्याख्या करते हुए टीकाकार कहते हैं
तस्कराः- चौरास्तेषां प्रयोगः हरणक्रियायां औरगमभ्यनुज्ञा तस्करप्रयोगः।