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( १०४) ऊपर कहे हुए पांच अतिचारों में से पहला अतिचार तेनाहडे या स्तेनाहृत है । टीकाकार ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है
स्तेना:- चौरास्तैराहृतं-पानीतं किञ्चित् कुकुमादि देशान्तरात् स्तेनाहृतं, तत् समर्घमिति लोभाद् गृहृतोऽतिचारः।
___ अर्थात् -चोरों द्वारा दूसरी जगह से हरण की हुई वस्तु, फिर वह वस्तु कुकुम ही क्यों न हो, लोभ से ग्रहण करना ‘स्तेनाहृत' या 'तेनाहडे' अतिचार है।
कई लोग वस्तु को सस्ती देख कर उसके विषय में बिना कुछ अनुसंधान किये ही उसे खरीद लेते हैं । परन्तु ऐसा करने में कभी न कभी चोरी की वस्तु खरीद में भा जाना स्वाभाविक है । जानबूझ कर चोरी की वस्तु खरीदना चोरी के ही समान पाप है । इस प्रकार से चोरी की वस्तु खरीदने वाले को राज्य भी चोर के ही समान दण्ड देता है और चोरी की न जान कर साहूकारी रीति से खरीदी हुई वस्तु को बिना मूल्य लौटाये ही ले लेता है। इसलिये प्रत्येक वस्तु को लेते समय यह जांच कर लेना उचित है कि यह वस्तु चोरी की तो नहीं है । चोरी की वस्तु भूल से भी न खरीदनी चाहिये, अन्यथा वह अतिचार हो जाएगा।
यहां प्रश्न होता है कि चोरी के विषय में मोटे रूप से कैसे जाना जा सकता है कि यह वस्तु चोरी की है ? इसके लिये सब से बड़ी पहचान वस्तु के बाजार-भाव से