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________________ अतिचार इस तीसरे व्रत स्थूल अदत्तादान - विरमण के पांच अतिचार हैं थूलगदिन्नाणवेर मरणस्स पंच प्राइयरा जाणिव्वा न समायरियव्वा, तंजहा - तेनाहडे, तक्करप्पोगे विरुद्ध रज्जातिकम्मे, कूडतुल्लकूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे । ( उपा० सू० प्र० अ० ) अर्थात् - स्थूलअदत्तादान - विरमण के पांच अतिचार श्रावक को जानने योग्य हैं, परन्तु आचरण करने योग्य नहीं हैं। वे अतिचार ये हैं- स्तेनाहुत, तस्करप्रयोग, विरुद्धराज्यातिक्रम, कूटतुलकूटमान, तत्प्रतिरूपकव्यवहार । अतिचार तभी तक प्रतिचार है, जब कि उसमें बताये हुए काम संकल्प पूर्वक न किये जावें । संकल्प पूर्वक यानी जान बूझ कर इन्हीं कामों को करने से यही काम अनाचार की गणना में श्रा जाते हैं और अनाचार होते ही व्रत भंग हो जाता है । भगवान् ने इन अतिचारों को विशेष रूप से इसलिए बताया है कि प्रतिचार में बताई हुई बातों का काम गृहस्थी में विशेष रूप से पड़ता है, इसलिये इन कामों को जान पर इनसे बचने की सावधानी रखे, अन्यथा व्रत टूट जाएगा ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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