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शास्त्रकारों ने गृहस्थ श्रावकों के लिये स्थूल अदत्तादानविरमरण व्रत बतलाया है । उन्होंने श्रावकों के लिये यह व्रत धारण करना आवश्यक बतलाया है ।
थूलगश्रदत्तादारणं समरगोवासश्रो पञ्चखाइ, से दिन्नादा दुविहे पन्नत्ते तंजहा - सचित्तादाणे श्रचितादत्तादाणे
।
( आवश्यक सूत्र अ० ६ )
अर्थात् -- श्रमणोपासक 'स्थूल अदत्तादान का त्याग करे । स्थूल अदत्तादान दो प्रकार का है । एक सचित्त- अदत्तादान और दूसरा चित्त - अदत्तादान |
टीकाकार ने स्थूल अदत्तादान की व्याख्या करते हुए कहा है कि दुष्ट अध्यवसाय - पूर्वक अपने अधिकार से परे, अर्थात् दूसरे के अधिकार की वस्तु को बिना उस वस्तु के श्रधिकारी की आज्ञा के ग्रहण करना, स्थूल - अदत्तादान है । यह अदत्तादान दो प्रकार का है । जिसमें जीव है वह सचित्त है और सचित्त की चोरी करना, सचित्त- अदत्तादान है । सचित्त में मनुष्य, पशु, पक्षी, कीटाणु, बीज, वृक्ष प्रादि वे सब शामिल हैं, जिनमें जीव है जिसमें जीव नहीं है, उसे अचित्त कहते हैं । जैसे सोना, चांदी, ताम्बा, पीतल, रत्न, कंकर, वस्त्र आदि । अचित्त की चोरी करना अचित्त - अदत्तादान है ।
शास्त्रकारों ने गृहस्थ - श्रावकों को स्थूल प्रदत्तादानविरमण व्रत में उस चोरी का त्याग बताया है, जिसे संसार में चोरी कहते हैं और जिस चोरी के करने से चोरी करने