________________
(εε)
अलग करके तीसरे महाव्रत सर्वथा अदत्तादान - विरमण में उपस्थित होता हूँ ।
सूक्ष्म ( महा ) व्रत धारण करने के समय साधु को इस प्रकार प्रतिज्ञा करनी होती है । इस प्रतिज्ञा के अनुसार, साधु बिना दी हुई किसी भी वस्तु को नहीं ले सकते, फिर वह वस्तु चाहे गुरु की हो, शिष्य की हो, या और किसी की हो । जिस वस्तु पर किसी का अधिकार नहीं है, या जो वस्तु सार्वजनिक है, साधु उसका उपयोग भी बिना किसी की प्रज्ञा के नहीं कर सकते क्योंकि ऐसी वस्तु पर साधु का अधिकार नहीं रहा है । संसार की सारी वस्तुनों साधु अपना अधिकार उठा चुके हैं, इसलिये वे उसी वस्तु का भोगोपभोग करं सकते हैं, जो दूसरे ने दी हो । साधु यदि किसी को अपना शिष्य भी बनावेंगे तो उस शिष्य बनने वाले के अभिभावकों की आज्ञा प्राप्त हो जाने पर । अभिभावकों की आज्ञा के बिना शिष्य बनाने वाले साधु का यह महाव्रत भंग हो जाता है । इसी तरह अन्य सम्प्रदाय
से
के
साधु को, बिना उसके गुरु की अनुमति प्राप्त किये अपने में मिला लेना भी प्रदत्तादान है ।
की
मतलब यह कि सूक्ष्म व्रत धारण करने वाला, किसी वस्तु को बिना दूसरे के दिये अपने काम में नहीं ला सकता । गृहस्थ - श्रावक यदि सूक्ष्म व्रत धारण करे तो सार्वजनिक चीज तो क्या, घर की भी उन चीजों को नहीं ले सकता, जिन पर घर के किसी दूसरे आदमी का किंचित् भी अधिकार है । इसलिये जब तक वह गृहस्थ है, तब तक सूक्ष्म प्रदत्तादान - विरमरण व्रत का पालन करने पर, उसका गृहस्थ- जीवन नहीं निभ सकता, इस बात को विचार कर.