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________________ (६८) अहावरे तच्चे भंते ! महव्वए अदिन्नादाणाम्रो वेरमणं सव्वं भंते ! महव्वए अदिन्नादाणं पञ्चक्खामि, से गामे वा नगरे वा रन्ने वा अप्पं वा बहुं वा अणुवा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सगं अदिनगेण्हेज्जा नेवन्नेहिं अदिण्णं गिण्हावेज्जा अदिन्नं गिरणहंतेवि अन्ने ने समणुजाणेज्जा; जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजारणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि । तच्चे ते ! भंमहव्वए उवडिप्रोमि सव्वानो अदिन्नादाणाम्रो वेरमणं ॥ ( दशवैका० चौ० अ० ) अर्थात्- गुरु से शिष्य ने पूछा- भगवन् ! तीसरा महाव्रत कौन सा है ? गुरु ने कहा-तीसरा महाव्रत अदत्तादान से निवर्तना है । शिष्य ने पूछा- उसमें क्या करना पड़ता है ? गुरु ने कहा- ग्राम नगर या जंगल आदि में, थोड़ी या ज्यादा, छोटी या बड़ी, सचित्त या अचित्त वस्तु को किसी के दिये बिना ग्रहण करे नहीं, दूसरे से ग्रहण करावे नहीं और ग्रहण करने वाले को भला समझे नहीं, मन से, वचन से और काय से । तब शिष्य कहता हैभगवन् ! मैं अदत्तादान को बुरा समझ कर आपके कथनानूसार उससे निवर्तता है । मैं अदत्तादान का प्रतिक्रमण करता हूं, निन्दा करता हूँ और इस पाप को आत्मा से
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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