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(६६) के विषय में प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है कि- ..
अन्य के द्रव्य को हरण करने की क्रिया से निवृत्तियुक्त, यह अदत्तादान-विरमण नाम का व्रत, सुव्रत और सम्मान देने वाला है । यह व्रत, तृष्णा और कलुषता का निग्रह करने वाला, इन्द्रियों को संयम में रखने वाला, तीर्थकरों द्वारा उपदिष्ट उत्कृष्ट निग्रन्थ-धर्म है । यह व्रत पाप के मार्ग को रोकने वाला है। इस व्रत को धारण करने वाला सब मनुष्यों में उत्तम बलवान् है । इसके धारण करने वाले को कोई भय नहीं है और न उसे कोई दोष ही लग सकता है।
___ अन्य विद्वानों ने भी इस व्रत की प्रशंसा करते हुए कहा है
तमभिलषति सिद्धिस्तं वृणीते समृद्धिः, तमभिसरति कोतिर्मुञ्चते तं भवातिः । स्पृहयति सुगतिस्तं नेक्षते दुर्गतिस्तम्, परिहरति विपत्तियो न गृह्णात्यदत्तम् ।
(सिन्दूरप्रकरण ) ___ अर्थात्-सिद्धि उसकी अभिलाषा करती है, समृद्धि उसे स्वीकार करती है, कीर्ति उसके पास आती है, सांसारिक पीड़ाएं उसे त्याग देती हैं, सुगति उसकी स्पृहा (चाह) करती है, दुर्गति उसे नहीं देखती है और विपत्ति उसे छोड़ देती है, जो बिना दिये हुए यानी अदत्त को ग्रहण नहीं करता।