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तो धधकती हुई आग रहती है और कहीं अत्यन्त शीत । ऐसे नरक में उन्हें अनेकों कठिन दुःख भोगने पड़ते हैं। बहुत काल तक वहां रह चुकने के पश्चात् वे तिर्यक्योनि में जन्म पाते हैं, जहां नरक के समान ही दुःख होता है । चोरी करने वाले लोग यदि अनन्तकाल के पश्चात् मनुष्यभव पाते भी हैं, तो अनेकों बार नरक-तिर्यक-योनि में परि भ्रमण कर चुकने पर मनुष्य जन्म पाते हैं । मनुष्य-जन्म में भी वे सुखी नहीं होते, किन्तु या तो अनार्य जाति में उत्पन्न होते हैं, या आर्य-जाति के ऐसे कुल में जन्म लेते हैं, जिससे लोग घृणा करते हैं । इस प्रकार मनुष्य-योनि पाकर भी वे पशु तुल्य कष्ट भोगते हैं । मनुष्य-योनि में भी वे तत्त्वज्ञान नहीं पाते, क्योंकि वे शास्त्र-विरुद्ध तत्त्व के उपदेशक, एकान्त हिंसा में श्रद्धा रखने वाले और कामभोग की बहुत लालसा वाले होते हैं । मनुष्य भंव में वे लोग नरक जाने के ही काम करते हैं और अपने संसार को बढ़ाते हैं । चोरी करने वाले इस तरह आठ प्रकार के कर्म-बन्धनों से अपने को बांध कर, नरक, तिर्यक, मनुष्य, देव-भव रूपी संसार में भटकते रहते हैं ।
इन वर्णन किये हुए सब पापों और कष्टों से बचने के लिये चोरी को त्यागना उचित है ।