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काम होता है । यह चोरी कार्य, राग द्वेष से पूर्ण, दया से रहित, आर्यजनों तथा साधुजनों से निन्दित और तस्करों को बहुत प्रिय है । अदत्तादान भय, अकीर्ति, वध, नाश, संग्राम, प्रियजनों तथा मित्रजनों की अप्रीति और जन्म-मरण का कारण है। यह कार्य, दुःखों के प्रवेश करने का द्वार है । इसके करने वाले को राजादि द्वारा दण्ड प्राप्त होता है । इसका फल दारुण है, यह बड़े पाप का प्रवाह है, इसलिये इस कार्य को आश्रव द्वार कहते हैं ।
चोरी करने वाले की कीर्ति नष्ट हो जाती है । ऐसे आदमी का विश्वास करना तो दूर रहा, लोग उसके पास भी खड़े नहीं रहते, उसे घृणा की दृष्टि से देखते हैं । चोरी करने वाले की इस लोक और परलोक में जो दुर्गति होती है, उसका वर्णन प्रश्नव्याकरण सूत्र में सुन्दर ढंग से किया गया है।
कर्म से पराभव पाये हुए लोग, अपनी इन्द्रियों को संयम में नहीं रख सकते। तब शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श में लोलूप बन कर, इनके मोह में मुग्ध होकर तथा दूसरे के धन में लोभ-तृष्णा बढ़ी हुई होने से, ठग कर, झूठ बोल कर और सेंध आदि द्वारा दूसरे का धन हरण करते हैं । तब उन नरकगामी चोरों को पकड़ कर राजपुरुष अपने
आधीन करते हैं, बांध कर प्रसिद्ध-प्रसिद्ध मार्गों से घुमाते हैं और लातें, घूसे, जूते, लकड़ी आदि से मारते हैं।
___ चोरी करने के कारण इस लोक में होने वाले कष्टों का वर्णन करते हुए सूत्र में कहा है कि
चोरी करने वाले लोग, मर कर नरक में जाते हैं । नरक आनन्द-दाता स्थान नहीं होता है, किन्तु उसमें कहीं