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प्रारम्भ तो- ऐसे लोगों की चोरी अपने ही घर तक रहती है, परन्तु जब घर में दाल नहीं गलती या कुछ नहीं रह जाती, तब वे दूसरे के धन पर हाथ साफ करने लगते हैं ।
फिजूलखर्ची में, दूसरा नम्बर अन्य - अन्य दुर्व्यसनों का है । यानी शराब, गाँजा, भंग, तमाकू, चर्स, रण्डीबाजी आदि अन्य बुरे कार्यों का व्यसन होना । दुर्व्यसनी को जब दुर्व्यसनों के लिये पैसा नहीं मिलता, तब वह चोरी करने लगता है ।
फिजूलखर्ची में तीसरा नम्बर सामाजिक कुप्रथाओं का है । समाज में जब यह नियम होता है कि विवाह, शादी, नुकते या किसी और काम में इतना खर्च करना ही चाहिए, या इतना रुपया, इतना जेवर, इतना कपड़ा होने पर ही विवाह हो सकता है, या अमुक वस्तु श्रौर इतनी रसोई देनी चाहिए, तब इस कुप्रथा और फिजूल खर्ची का पोषण करने के लिये भी लोग चोरी करने लगते हैं । यह बात दूसरी है कि ऐसे लोग असभ्य उपायों से दूसरे के हकों को हरण न करके सभ्य उपायों से हरण करें, परन्तु ऐसा करना भी तो चोरी • ही है । मतलब यह कि फिजूल खर्ची भी चोरी का एक कारण है ।
चोरी के बाह्य कारणों में से तीसरा कारण है, यश कीर्ति या बड़ाई की चाह । इस कारण से चोरी करने वालों में पहला नम्बर उन लेखकों, वक्ताओं और कवियों का है, जो अपनी बड़ाई के लिये, दूसरों के लेख, कविता और भावों को चुरा कर, उसी रूप में या कोई दूसरा रंग चढ़ा कर अपने नाम से प्रसिद्ध करते हैं । दूसरा नम्बर है उन सेठ, साहूकार, अमीर, रईस और राजानों का, जो दूसरे के धन