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(८८) को चोरी के उपायों से हरकर केवल यश-कीर्ति के लिये, विवाह-शादी, मेहमानी भ्रमण आदि में खर्च करते हैं, या दानी बनने के लिये संस्था आदि को दान देते हैं । ऐसे ही वे हैं, जो दूसरे का राज्य छीन कर अपने को वीर कहलाना चाहते हैं अथवा जो दूसरे का रोजगार मार कर अपने को बड़ा व्यापारी प्रसिद्ध करने के इच्छुक रहते हैं । तीसरा नम्बर है, उन साधु-सन्त कहलाने वालों का, जो केवल प्रशंसा और प्रतिष्ठा के लिये अपने आपको, आचार-भ्रष्ट होने पर भी उत्तम साधु, स्थविर न होने पर भी अपने को स्थविर, तपस्वी न होने पर भी अपने को तपस्वी और विद्वान् न होने पर भी अपने को विद्वान् बताते हैं । मान बड़ाई के लिये और भी बहुत लोग बहत रूपों से चोरी करते सुने जाते हैं, जिनका वर्णन यहां विस्तार भय से नहीं किया जाता है ।
चोरी का चौथा कारण है-स्वभाव । अशिक्षा और कुसंगति के कारण बहुत लोगों का स्वभाव ही ऐसा हो जाता है कि उनके पास किसी प्रकार की कमी न होने पर भी या दूसरा रोजगार मिलने पर भी, वे चोरी करना अच्छा समझते हैं और चोरी करते हैं ।
___ चोरी का सबसे बड़ा बाह्य कारण अराजकता है । राज्य द्वारा जब भूखों मरते हुओं की व्यवस्था नहीं की जाती, दुर्व्यसन नहीं मिटाये जाते, सामाजिक कुप्रथानों तथा मान-बड़ाई के लिये चोरी करने वालों को नहीं रोका जाता
और शिक्षा का प्रबन्ध नहीं किया जाता, तब तक चोरी होना स्वाभाविक है ।
चोरी कौन और कैसे करते हैं तथा चोरों में किन