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मरते अपने पेट की ज्वाला बुझाने के लिये चोरी का आश्रय लेते हैं । पेट की ज्वाला से पीड़ित लोग उचित-अनुचित उपायों का ध्यान नहीं रखते, किन्तु जिस तरह बनता है, उसी तरह दूसरों का धन हरण करके अपने पेट की ज्वाला बुझाते हैं। समाचार-पत्रों से प्रकट है कि केवल भारत में ही प्रति वर्ष सैकड़ों मनुष्य बेकारी से घबराकर आत्म-हत्या कर लेते हैं। बेकार होने पर भी जो लोग चोरी को बुरा समझते हैं, वे आत्म-हत्या कर डालते हैं । मतलब यह कि चोरी करने के कारणों में से एक कारण बेकारी है।
बेकारी बढ़ाने में मुख्यतः कारखानों का हाथ है । जिस काम को करके लाखों-करोड़ों आदमी अपना भरणपोषण करते थे, कारखानों के होने पर उन लाखों-करोड़ों की आजीविका कुछ ही लोगों को मिल जाती है । इस तरह कारखानों से बेकारी बढ़ गई है ।,
बेकारी बढ़ने का दूसरा कारण है, देश के वाणिज्य और कला-कौशल का नष्ट होना । जब देश का वाणिज्य और कला-कौशल नष्ट हो जाते हैं, तब उनके द्वारा आजीविका चलाने वाले लोग बेकार भूखों मरते चोरी करने लग जाते हैं। ___ बेकारी के ऐसे और भी कई कारण है, जिनका वर्णन करना अनावश्यक है।
चोरी के बाह्य कारणों में से दूसरा कारण फिजूल खर्ची है । फिजूल-खर्ची में पहला नम्बर जुए का है । सट्टा, फाटका, लॉटरी, सौदा, शर्त आदि सब जुए के ही रूप हैं । आलसी लोग जुआ खेलने लगते हैं । जब वे अपनी सम्पत्ति को उसमें स्वाहा कर देते हैं, तब चोरी करने लगते हैं ।