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खण्ड-२
आत्मा का दर्शन
तत्थ सक्को तं दतॄण परंमुहो भणति देवे-भो सणह! एस दरप्पो। ण एतेण अम्हं चित्तरक्खा कता अन्नेसिं च देवाणं। पुणो य तित्थगर पडिणीओ। ण एतेण अम्हं कज्ज। असंभासो । निव्विसओ य कीरतु।
उसे देख शक्र पराङ्मुख हो देवों से बोला-हे देवो! सनो, यह दुरात्मा है। इसने न तो मेरी और न दूसरे देवों के चित्त की अनुपालना की है। यह तीर्थंकर का प्रत्यनीक-विरोधी है। यह हमारे किसी काम का नहीं है। यह बातचीत करने योग्य भी नहीं है। इसे देश निकाला दे.
ताहे पाएण निच्छूढो।
संगम को पैर से लताड़ कर निकाल दिया गया।
इन्द्रों द्वारा कुशल पृच्छा १००. ततो आलभियं गतो। तत्थ हरिविज्जुकुमारिंदो
एति। ताहे सो वंदित्ता भगवतो महिमं काऊण भणति-भगवं! पियं पुच्छामि। णिच्छिन्ना उवसग्गा। बहुं गतं थोवयं अवसेसं। अचिरेण ते कालेण केवलणाणं उप्पन्जिहिति।
महावीर आलभिका नगरी में गए। वहां विद्युत्कुमार का इन्द्र हरि आया। उसने महावीर की वेदना की, महिमा की और बोला-भगवन्! आपका कुशल पूछ रहा हूं। आपने उपसर्गों का पार पा लिया है। बहुत बीत गया है। थोड़ा बचा है। अब शीघ्र आपको केवलज्ञान उपलब्ध होगा।
१०१. ततो सेयवियं गतो। तत्थ हरिस्सहो पियं
पुच्छओ एति।
महावीर श्वेतविक नगरी में गए। वहां विद्युत्कुमार के इन्द्र हरिस्सह ने, वंदना की, महिमा की और कुशल पूछकर चला गया।
' महावीर श्रीवस्ती गए। नगरी के बाहर प्रतिमा में स्थित हो गए।
१०२. ततो सावत्थिं गतो। बाहिं पडिमं ठितो।
१०३. ताहे सामी कोसंबिं गतो। तत्थ चंदसूरा
सविमाणा महिमं करेंति। पियं च पुच्छंति।
महावीर कौशंबी गए। वहां चन्द्र और सूर्य ने विमान सहित आकर वन्दना की, महिमा की और कुशल पूछा।
१०४. वाणारसीय सक्को पियं च पुच्छति।
महावीर वाराणसी गए। शक ने वंदना की, महिमा की और कुशल पूछा।
१०५. रायगिहे ईसाणो पियं पुच्छति।
राजगृह में ईशानेन्द्र ने वंदना की. महिमा की और कुशल पूछा।
१०६. महिलाए वासारत्तो एक्कारसमो। चाउम्मास- महावीर मिथिला आए। वहां ग्यारहवां वर्षावास
खमणं करेति। तत्थ धरणो आगतो पियं पुच्छओ किया। वर्षावास में चातुर्मासिक तप किया। वहां धरणेन्द्र महिमं करेति।
आया। वन्दना की, महिमा की और कुशल पूछा।
साधना का बारहवां वर्ष . १०७. ततो निग्गतो वेसालिं एति। तत्थ भूताणंदो पियं महावीर वैशाली गए। नागकुमार के इन्द्र भूतानंद ने