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________________ उद्भव और विकास ९६. ततो सामी वयग्गामं गोउलं पत्तो । तत्थ य सहिवसं छणो । सव्वत्थ परमन्नं उवक्खडियं । चिरं 'कालं तस्स देवस्स ठितगस्स उवसग्गं काउं । सामी चिंतेति-गता छम्मासा, मा गतो होज्जत्ति अंतिगतो जाव अणेसणातो करेति । सामी उवउत्तो पासति । ताहे अद्धहिंडितो चेंव नियत्तो, बाहिं पडिमं ठितो । ९७. सो य सामीं ओहिणा आभोएइ - किं भग्गपरिणामो नवत्ति ? ताहे सामी तहेव विसुद्धपरिणामो छज्जीवहितं झायति । ताहे व आउट्टो । णं तीरेति चालेउति । जो एच्चिरेणवि कालेणं छम्मासेहिं ण चलिओ एस दीहेणावि कालेणं ण सक्को चालेउं । संगम द्वारा क्षमायाचना तापादे पडित भणति - सच्चं सच्चं जं सक्को | भजति । सव्यं खामि। भगवं अहं भग्गपश्नो। तुज्झे समत्तपइन्ना। जहा एताहे अतीह पारेह, ण करेमि उवसग्गं भगवं । सामी भणति - भो संगमया! णाहं कस्सति य बत्तव्वो । इच्छाए अतीमि वा ण वा । ९८. ता बीयदिवसे तत्थेव गामे भगवं हिंडमाणो वत्थवालथेरीए दोसीणेण पायसेण पडिलाभितो । पंच दिव्वाणि । ७७ ९९. इतो य सोहम्मे सव्वे देवा तद्दिवसं उव्विग्गमणा अच्छंति । संगमतो सोहम्मं गतो । उपसर्ग किया। अ. २ : साधना और निष्पत्ति महावीर व्रजग्राम के गोकुल में गए। उस दिन गांव में उत्सव था। सब घरों में खीर बनाई गई थी। संगम देव को उपसर्ग करते हुए लम्बा समय हो गया। महावीर ने सोचा- छह महीने बीत गए हैं। वह कहीं चला नहीं गया है। उसी समय संगम आया और उसने भोजन को अनेषणीय बना दिया । महावीर ने अपने ज्ञानबल से देखा और भिक्षा किए बिना ही लौट आए। प्रतिमा में स्थित हो गए। संगम ने अपने अवधिज्ञान से देखा कि महावीर के परिणाम कुछ भग्न हुए हैं या नहीं ? महावीर के परिणाम उतने ही विशुद्ध थे, जितने छह मास पूर्व। वे छह जीवनिकाय के सभी जीवों का हित चिंतन कर रहे थे। संगम यह देख अपने कार्य से निवृत्त हुआ। वह महावीर को विचलित करने में समर्थ नहीं हुआ। उसने सोचा- जो महावीर छह माह तक उपसर्ग करने पर भी विचलित नहीं हुए, उन्हें दीर्घकाल में भी विचलित नहीं किया जा सकता। संगम महावीर के पैरों में गिरा और बोला- वह सत्य है, वह सत्य है । इन्द्र ने जो कहा, वह सत्य है। भंते! मैंने जो कुछ किया, उस सबके लिए क्षमायाचना करता हूं। भगवन्! मैं भग्नप्रतिज्ञ हूं, आप यथार्थप्रतिज्ञ हैं। आप पधारें और पारणा करें। भगवन्! मैं अब उपसर्ग नहीं करूंगा। महावीर ने कहा- हे संगम! मैं किसी के वक्तव्य की अपेक्षा नहीं रखता। मैं अपनी इच्छा से ही आता हूं और हूं। दूसरे दिन महावीर गांव में भिक्षा के लिए गए। एक वृद्धा ग्वालिन ने बासी खीर का दान दिया। पांच दिव्य प्रकट हुए। उस दिन सौधर्म देवलोक के सभी देव उद्विग्न-से बैठे थे। संगम सौधर्म देवलोक में गया।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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