SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उद्भव और विकास अ. २ : साधना और निष्पत्ति पाडेति। पच्छा कलंकलितावायं विउव्वति। तेण जहा चक्काइखओ तहा भमाडिज्जइ, णत्तिआवेत्तं वा। एवंपि ण सक्का ताहे कालचक्कं विउव्वति। तं विउव्विऊण उड्ढं गगणगतलं गतो एत्ताहेणं मारेमित्ति मयति वज्जासणि संनिभं। जं मंदरंपि चुरेज्जा। तेण पहारेण भगवं ताव निब्बुड्डो जाव अम्गणहा हत्थाणं। जाहे तेणवि ण सक्को ताहे चिंतेति-न सक्को एस मारेउंति अणुलोमे करेमि। ताहे सामाणियदेविड्ढिं देवो दाएति। सो विमाणगतो भणति य-वरेह महरिसि? निष्फत्ती सम्गमोक्खाणं। उन्हें उठा-उठाकर नीचे गिराया। चक्राकार हवा चलाई। उसमें महावीर का शरीर बेंत की तरह कंपित होने लगा। कालचक्र का निर्माण कर संगम आकाश में स्थित हुआ और सोचा यह चक्र मेरु पर्वत को भी चूर-चूर कर सकता है। मैं इस चक्र को महावीर पर फेंकू। कालचक्र के प्रहार से महावीर हाथों के नख तक भूमि में धंस गए। ताहे पभायं विउव्वति। लोगो सव्वो चंकमितुं . पयत्तो। भणति-देवज्जगा। अज्जवि अच्छसि? भगवंपि कालमाणेण जाणति जहा ण ताव पभायंति जाव सभावपहायंति। एस बीसतिमो। इन उपायों से महावीर को मारा नहीं जा सकता, यह सोच संगम अनुकूल उपसर्ग करने लगा। उसने सामानिक देवता की ऋद्धि दिखाई और देवविमान में स्थित होकर बोला-महर्षि! आपकी तपस्या सिद्ध हो गई है। आप स्वर्ग और मोक्ष की ऋद्धि का वरण करें। प्रभात का निर्माण किया। सब लोग इधर-उधर घूमने लगे। उसने महावीर को संबोधित कर कहा-अब तक आप यहीं ठहरे हुए हैं। महावीर काल को जानते थे। उन्होंने जान लिया कि वह प्रभात स्वाभाविक नहीं, कृत्रिम है। यह संगम कृत बीसवां उपसर्ग था। जब संगम महावीर को विचलित न कर सका तो लौट गया और सोचा कल फिर उपसर्ग करूंगा। दूसरे दिन संगम पुनः उपसर्ग करने लगा। जाहे ण तरति ताहे सुठुतरं पडिनिवेसं गतो कल्ले काहंति। पुणोवि अणुकड्ढति। .. ८५.ताहे पभाते सामी वालुयानामग्गामो तं पहावितो। तत्व अंतरा पंचचोरसता विगुव्वति। प्रभात होने पर महावीर बालुका ग्राम की ओर गए। संगम ने ५०० चोरों का निर्माण कर महावीर को उपसर्ग दिए। ८७.ताहे बालुगं गतो। सामी मिक्खं हिंडति। महावीर बालुका ग्राम में गए। वहां भिक्षा के लिए घूमने लगे। ८८.निम्गतो भगवं सुभोमं वच्चति। बालुका ग्राम से सुभूम गए। इन सभी ग्रामों में संगम ने उपसर्ग किए। ८९.पच्छा सुच्छेत्ता णामं गामो तहिं वच्चति। जाहे सुभूम से महावीर सुक्षेत्र ग्राम में गए। जब वे वहां अतिगतो सामी भिक्खाए ताहे इमो आवरेत्ताविड- भिक्षा के लिए गए तो संगम बहुरूपिए का रूप बना जोररूवं विउव्वति। तत्थ हसति य अट्टहासे य जोर से हंसने और गाने लगा। अशिष्ट भाषा बोलने मंचति गायति य। असिट्ठाणि य भणति। तत्थवि लगा। पीटने लगा। हम्मति।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy