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उद्भव और विकास
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अ. २ : साधना और निष्पत्ति
वा....ते सव्वे सम्म सहति जाव अहियासेति। तं अहो भगवं तिलोगवीरे-ण सक्का केणइ देवेण दाणवेण वा जाव तेलोक्केण वा झाणाओ मणागमवि चालेउंति कटु वंदति णमंसति।
उन महावीर को कोई भी देव अथवा दानव ध्यान से किंचित् भी विचलित नहीं कर सकता। ऐसा कह इन्द्र ने महावीर को वन्दन-नमस्कार किया।
संगमकृत उपसर्ग ८५.इतो य संगमको सोधम्मकप्पवासी देवो सक्क- उस सौधर्मकल्प सभा में संगम नाम का एक सामाणिओ अभवसिद्धीओ। सो भणति-अहो सामानिक देवता था। वह अभव्य था। उसने कहा-देवराज देवराया रागेण उल्लावेति। को नाम माणुसमेत्तो इन्द्र रागवश ऐसा कथन कर रहे हैं। ऐसा कौन मनुष्य है देवेणं न चालिज्जति? अज्जेव णं अहं चालेमित्ति।। जिसे देवता विचलित न कर सके। मैं उसे आज ही
विचलित कर दूं। ताहे सक्को न वारति। माजाणिहिति परनिस्साए इन्द्र ने सोचा-मैं अगर रोकंगा तो उसका अर्थ होगा, भगवं तवोकम्मं करेतित्ति। एवं सो आगतो। महावीर दूसरों के सहारे तपस्या कर रहे हैं। इन्द्र मौन
रहा। संगम.महावीर के पास आया। ताहे सामिस्स उवरिं वज्जधूलीवरिसं च वरिसेति संगम ने सर्वप्रथम महावीर पर वज्रधूलि की वर्षा की। जाव अच्छीणि कन्ना य सव्वसोत्ताणि पूरियाणि। आंख, कान आदि सब इन्द्रिय-स्रोत धूल से भर गए। निरुस्सासो जातो। तेण 'सामी तिलतुसति- श्वास लेना भी कठिन हो गया। पर महावीर अपने ध्यान • भागमेत्तंपि झाणाओ ण चलितो।
से तिल-तुष भाग मात्र भी विचलित नहीं हुए। ताहे संतो तं साहरित्ता ताहे कीडियाओ . जब वह थक गया तो उस माया को समेट चींटियों :: विउव्वति। वज्जतुंडाओ समंततो विलम्गतो का निर्माण किया। वे वज्रमुखीं थीं। वे शरीर के चारों ओर .. खायंति।
चढ़कर महावीर को खाने लगीं। अन्नाओ सोत्तेहिं अंतोसरीरगं अणुपविसित्ता वे शरीर के एक स्रोत से प्रविष्ट हो, दूसरे स्रोत से अण्णेण सोत्तेण अतिति अन्नेण णिति। चालणी बाहर आतीं। उन्होंने महावीर के शरीर को चलनी बना जारिसो कओ। तहवि भगवं न चलिओ।
दिया। पर महावीर विचलित नहीं हुए। ताहे उसे विजव्यति बज्जतुंडे। जे लोहितं एगेण . खटमल का निर्माण किया। वे वज्रमुखी थे। वे एक ही पहारेण णीणिति।
प्रहार में शरीर से खून निकाल देते। जाहे तहवि ण सक्का ताहे उण्हेलाओ विउव्वति। महावीर विचलित नहीं हुए। उसने तिलचट्टों का तातो तिक्खेहिं तुडेहिं अतीव दसंति।
निर्माण किया। वे तीखे मुख से महावीर के गहरा डंक
लगाते। जहा जहा उवसग्गं करेंति तहा तहा सामी अतीव जैसे-जैसे उपसर्ग होते महावीर वैसे-वैसे ध्यान में .. झाणेण अप्पाणं भावेति, जहा
और अधिक आत्मलीन होते। उन्होंने चिंतन किया यह 'तुमए चेव कतमिणं
सब तुमने ही किया है। शुद्ध आत्मा के लिए कोई दंड नहीं ण सुद्धचारिस्स दिस्सए दंडो'
होता। जाहे ण सक्का ताहे विच्चुए विउव्वति। ते संगम ने बिच्छओं का निर्माण किया। वे डंक लगाने खायंति।
लगे। १. इसका एक अर्थ दीमक भी है। २. उण्होला-तेल्लपातियाओ आवचू. १. पृ.३०४