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उद्भव और विकास
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अ.२: साधना और निष्पत्ति
साधना का ग्यारहवां वर्ष प्रतिमा के विशेष प्रयोग ८१.ततो साणुलठितं णाम गामं गतो। तत्थ भई चातुर्मास पूर्ण कर महावीर सानुलष्टि ग्राम में गए। पडिमं ठाति।
वहां भद्र प्रतिमा की। केरिसिया भद्दा?
भद्र प्रतिमा का स्वरूपपुव्वाहत्तो दिवसं अच्छति। पच्छा रतिं दाहिणहत्तो दिन में पूर्व की ओर खड़े रहकर ध्यान करते, रात अवरेण दिवसं उत्तरेण रत्तिं, एवं छठेण भत्तेण को दक्षिण दिशा की ओर खड़े रहकर ध्यान करते, दूसरे णिठित्ता।
दिन पश्चिम की ओर खड़े रहकर ध्यान करते और रात्रि में उत्तर दिशा की ओर खड़े रहकर ध्यान करते। इस प्रकार भद्र प्रतिमा में दो दिन और दो रात का ध्यान तथा
बेले की तपस्या की। तहवि ण नेव पारेति, अपारिता चेव महाभई उसे संपन्न करने से पूर्व ही महावीर महाभद्र प्रतिमा में ठाति। सा पुण पुव्वाए दिसाए अहोरत्तं, एवं स्थित हो गए। महाभद्र प्रतिमा में चार दिन-रात का ध्यान चउसुवि चत्तारि अहोरत्ता। एवं दसमेण णिठिता। और चौले (चार दिन का उपवास) की तपस्या की। ताहे अपारितो चेव सव्वतोभदं पडिमं ठाति। सा महाभद्र प्रतिमा को पूर्ण करने से पूर्व ही महावीर पुण सव्वतोभहा। इंदाए अहोरत्तं, पच्छा अग्गेयाए, सर्वतोभद्र प्रतिमा में स्थित हो गए। सर्वतोभद्र प्रतिमा में एवं दससुवि दिसासु सव्वासु।
दस दिन-रात का ध्यान और दस दिन की तपस्या की। विमलाए जाइं उड्ढलोतियाणि दव्वाणि ताणि महावीर विमला-ऊर्ध्वदिशा में ध्यान करते तब झाति।
ऊर्ध्वलोकवर्ती द्रव्यों का ध्यान करते। तमाए हिठिल्लाइं।
तमा अधोदिशा में ध्यान करते तो अधोलोकवर्ती
द्रव्यों का ध्यान करते। दास्यकर्म से मुक्ति ८२.पच्छा तासु सम्मत्तासु आणंदस्स गाहावतिस्स प्रतिमाओं को पूर्ण कर महावीर आनन्द गृहपति के
घरे बहुलियाए दासीए महाणसिणीए भायणाणि घर गए। वहां बहुला दासी रसोईघर के बर्तनों को साफ खणीकरेंतीए दोसीणं छड्डेउकामाए सामी कर रही थी। बासी अन्न को फेंकने के लिए वह बाहर पविट्ठो।
आई। उसी समय महावीर ने घर में प्रवेश किया। ताए भन्नति-किं भगवं! एतेण अट्ठो?
दासी ने पूछा-भंते! क्या आपको यह चाहिए? सामिणा पाणी पसारितो।
महावीर ने हाथ फैलाए। ताए परमाए सखाए दिन्नं, पंच दिव्वाणि, मत्थओ दासी ने परम श्रद्धा के साथ भिक्षा दी। पांच दिव्य
सर्वतोभद्र प्रतिमा में ध्यान का क्रम१. पूर्वदिशा में एक दिन-रात का ध्यान। २. आग्नेय दिशा-पूर्व-दक्षिण कोण में एक दिन-रात का ध्यान। ३. दक्षिण दिशा में एक दिन-रात का ध्यान। ४. नैऋत्यदिशा-दक्षिण-पश्चिम कोण में एक दिन-रात का
ध्यान। ५. पश्चिम दिशा में एक दिन-रात का ध्यान।
६. वायव्य दिशा-पश्चिम-उत्तर कोण में एक दिन-रात का
ध्यान। ७. उत्तर दिशा में एक दिन-रात का ध्यान। ८. ईशान दिशा-उत्तर-पूर्व कोण में एक दिन-रात का ध्यान। ९.विमला-ऊर्ध्वदिशा में एक दिन-रात का ध्यान। १०. तमा-अधोदिशा में एक दिन-रात का ध्यान।