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अ. २ : साधना और निष्पत्ति
उद्भव और विकास बालतपस्वी वैश्यायन ७५.ताहे कुंमागाम संपत्ता। तस्स बाहिं वेसियायणो बालतवस्सी आतावेति। तस्स छप्पदीओ जडाहिंतो आइच्चताविता पडंति। जीवहियाए पडियाओ सीसे छुभति।
तं गोसालो दटूण ओसरित्ता तत्थ गतो भणति-किं भवं मुणी मुणितो उयाहु जयासेज्जातरो? ज्ञात्वा प्रव्रजितो नेति? अहवा किं इत्यी पुरिसे? एक्कसिं दो तिन्नि वारे। ताहे वेसियायणो रुट्ठो तेयं निसिरति।
महावीर कूर्मग्राम पहुंचे। ग्राम के बाहर बालतपस्वी वैश्यायन आतापना ले रहा था। सूर्य के ताप से तप्त होकर जूएं उसकी जटाओं से निकलकर नीचे गिर रही थीं। जूंओं का वध न हो जाए, यह सोच वह उन्हें पुनः सिर में डाल रहा था।
गोशालक ने यह देखा। उसके पास जाकर बोला-तुम मुनि हो अथवा जूओं के शय्यातर-जूओं को आश्रय देने वाले ?तुमने ज्ञानपूर्वक दीक्षा ली है अथवा ऐसे ही ले ली ? तुम स्त्री हो अथवा पुरुष ? ____ एक बार कहा, दूसरी बार कहा, तीसरी बार कहा।
वैश्यायन ने रुष्ट हो गोशालक को भस्म करने के लिए तेजोलेश्या का निसर्जन किया।
महावीर ने गोशालक पर अनुकंपा कर वैश्यायन की उष्ण तेजोलेश्या को प्रतिसंहृत करने के लिए शीतल तेजोलेश्या का निसर्जन किया।
ताहे सामिणा तस्स अणुकंपणट्ठाए वेसियाय- णस्स तस्स अणुकंपणट्ठाए वेसियायणस्स उसिणतेयपडिसाहरणट्ठाए एत्यंतरा सीतलिता लेस्सा णिसिरिया। सा जंबुद्दीवं बाहिरओ वेढेति उसिणा तेयलेस्सा।
. भगवतो सीतलिता तेयल्लेसा अब्भंतराओ :. वेदेति।
इतरा तं . परिचयंति सा तत्थेव सीतलाए विज्झाविता। ताहे सो भगवतो ललिं पासित्ता भणति से गतमेतं भगवं! गतमेतं भगवं! ण जाणामि जहा तुब्भं सीसो, खमह। ताहे गोसालो पुच्छति सामी! किं एस जूयासेज्जातरो पलवति? सामिणो कहितं।
वैश्यायन की उष्ण तेजोलेश्या जंबूद्वीप को बाहर से ' वेष्टित कर रही थी।
महावीर की शीतल तेजोलेश्या ने जंबूद्वीप के भीतरी - भाग का वेष्टन प्रारम्भ कर दिया।
उष्ण तेजोलेश्या गोशालक तक पहुंचे उससे पहले ही वह शीतल तेजोलेश्या से बुझ गई।
महावीर की यह लब्धि देख बालतपस्वी बोला-भगवन् ! मैंने जान लिया, जान लिया। मुझे यह ज्ञात नहीं था यह आपका शिष्य है। आप मुझे क्षमा करें।
गोशालक पूछने लगा-भंते! यह जूओं का शय्यातर क्या प्रलाप कर रहा है?
महावीर ने सारा वृत्तान्त सुनाया।
तेजोलेश्या की विधि ७६. ताहि भीतो पुच्छति-भगवं! किह संखित्तविउल- गोशालक ने भयभीत हो पूछा-भगवन्! संक्षिप्ततेयलेस्सो भवति?
विपुल तेजोलेश्या क्या होती है ? भगवं भणति-जे णं गोसाला! छठंछठेणं महावीर ने कहा-गोशालक! जो छह महीने तक अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं आयावेति. पारणए लगातार बेले-बेले दो-दो दिन का उपवास) की तपस्या सणहाए कम्मासपिंडियाए एगेण य वियडासएणं करता है. आतापना लेता है. पारणा में छिलके सहित जावेति जाव छम्मासा। से णं संखित्तविउल- मुट्ठीभर कुल्माष और एक चुल्लू पानी लेता है, उसे यह