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________________ आत्मा का दर्शन खण्ड-२ सावि वंतरी पराजिता संता ताव उवसंता पूयं करेति। कटपूतना पराजित हो गई और उसने महावीर की अभ्यर्थना की। ६२.ततो भगवं भहियं नाम णगरिं गओ। तत्थ छठें वासावासं उवगतं। तत्थ वरिसारत्ते गोसालेण समं समागओ। छठे मासे भगवतो गोसालो मिलितो। तत्थ चतुमासखमणं। विचित्ते य अभिग्गहे कुणति भगवं ठाणादीहिं। महावीर भद्रिका नगरी में गए। वहां छट्ठा वर्षावास आ गया। इस वर्षावास में महावीर के साथ गोशालक था। वह महावीर से अलग होने के छठे माह पुनः मिल. गया। इस वर्षावास में महावीर ने चातुर्मासिक तप किया। विविध अभिग्रह किए। आसनों का प्रयोग किया। साधना का सातवां वर्ष मगध जनपद में निरुपसर्ग विहार ६३.बाहिं पारेत्ता ततो पच्छा मगहविसए विहरति। नगरी के बाहर पारणा कर महावीर ने मगध जनपद निरुवसग्गं अट्ठमासे उदुबद्धिए। की ओर विहार किया। ऋतुबद्धकाल (शेषकाल) के आठ महीने निरुपसर्ग बीते। कोई उपसर्ग नहीं हुआ। ६४.एवं विहरिऊणं आलभितं एति। तत्थ सत्तम महावीर विहार करते-करते आलभिका नगरी में वासावासं उवगतो चाउम्मासखमणेण। आए। वहां सातवां वर्षावास किया और उसमें चातुर्मासिक तप किया। साधना का आठवां वर्ष ६५.ततो बाहिं पारेत्ता कंडगं नाम संनिवेसं तत्थ एति। नगरी के बाहर पारणा कर महावीर कण्डक सन्निवेश तत्थ वासुदेवघरे सामी कोणे ठितो पडिमं। गए। वहां वासुदेवगृह के एक कोने में प्रतिमा में स्थित हो । गए। ६६.ताहे निम्गया समाणा महणा णामं गामो। तत्थ बलदेवघरे सामी अंतो कोणे पडिमं ठितो। कण्डक सन्निवेश से महावीर मद्दन ग्राम गए। वहां बलदेवगृह के एक कोने में प्रतिमा स्थित हो गए। वाणमंतरी सालज्जा ६७.तत्तो निम्गता बहूसालगं णाम गामो तत्थ गता। तत्थ बहिं सालवणं णाम उज्जाणं। तत्थ ठितो। तत्थ य सालज्जा णाम वाणमंतरी। सा भगवतो पूर्व करेति। महावीर बहुशालक ग्राम में गए। ग्राम के बाहर शालवन नाम का उद्यान था। महावीर उस उद्यान में ठहरे। वहां सालज्जा नाम की बाणमंतरी थी। उसने महावीर की अभ्यर्थना की। ६८.ततो निग्गतो गता लोहम्गलं रायहाणिं। तत्थ जियसत्तू राया। सोय अन्नेण राइणा समं विरुद्धो। महावीर लोहार्गला राजधानी पहुंचे। वहां का राजा था जितशत्रु। उसका किसी दूसरे राजा के साथ वैर चल रहा था। उसने चारों ओर गुप्तचर छोड़ रखे थे। महावीर के मौन ने गुप्तचरों के मन में संदेह पैदा कर तस्स चारपुरिसेहिं गहिता पुच्छिज्जंता ण
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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