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उद्भव और विकास
अ. २ : साधना और निष्पत्ति
५८.ततो मुक्का समाणा निम्गता। तत्थ वच्चंताण दुवे
पंथा। ___ताहे गोसालो भणति-तुब्भे ममं हम्ममाणं ण बारेह। अवि य-तुब्भेहिं समं बहूवसग्गं अन्नं च अहं चेव पढम हम्मामि। तो वरं एगल्लो विहरिस्सं।
कूपिका सन्निवेश से मुक्त होकर महावीर आगे चले। रास्ते में दो मार्ग थे।
गोशालक ने कहा-आप मुझे पीटे जाने पर नहीं छुड़ाते हैं। मुझे आपके साथ बहुत से उपसर्ग सहने पड़ते हैं। और दूसरी बात यह है कि मैं ही पहले मारा जाता हूं। इसलिए अच्छा है मैं अकेला विहार करूं। सिद्धार्थ ने कहा तुम जैसा चाहो, वैसा करो। महावीर ने वैशाली की ओर विहार कर दिया।
गोशालक महावीर से अलग हो गया और अकेला विहरण करने लगा।
महावीर वैशाली गए। वहां कारशाला (लोहे का कारखाना) में ठहरे।
सिद्धत्थो भणति-तुमं जाणसि। 'ताहे सामी वेसालीमुखो पधावितो। इमो य भगवतो फिडितो एगल्लओ वच्चति।
५९.सामीवि वेसालिं गतो। तत्थ कम्मारसालाए अणुन्नवेत्ता पडिमं ठितो। .
६०.सामी गामायं संनिवेसं एति। तत्थ उज्जाणे _ बिभेलओ णाम जक्खो। सो भगवतो पडिमं
ठितस्स पूयं करेति।
वैशाली से विहार कर महावीर ग्रामाक सन्निवेश में गए। वहां उद्यान में बिभेलक नाम का यक्ष था। उसने प्रतिमा में स्थित महावीर की पूजा की।
वाणमंतरी कटपूतना ६१.ततो सामी सालीसीसयं णाम गामो तहिं गतो। महावीर शालिशीर्ष ग्राम में गए। उद्यान में प्रतिमा में तत्य उज्जाणे पडिमं ठितो। माहमासो य वटति। . स्थित हो गए। माघ का महीना था।
तत्व कडपूयणा वाणमंतरी। सामी दठ्ठणं तेयं । कटपूतना नाम की बाणमंतरी वहां आई। महावीर के - असहमाणी पच्छा तावसरूवं विउब्वित्ता वक्कल- तेज को न सहने के कारण उसने तापस का रूप बनाया।
नियत्था जडाभारेण य सव्वं सरीरं पाणिएण वल्कल पहना। बिखरी हुई जटाओं में पानी भरकर ओल्लेत्ता दहमि उवरिं ठिता।
महावीर के शरीर पर छिड़कने लगी। । सामिस्स अंगाणि धुणति। वायं च विउव्वति। द्रह पर स्थित हो उनके अंगों को प्रकंपित करने
लगी। तेज हवाएं चलाने लगी। जदि पागतो सो फुटितो होन्तो।
यदि साधारण व्यक्ति होता तो वह विचलित हो
जाता। सा य किल तिविठुकाले अंतेपुरिया आसि। ण य त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में वह उनके अंतःपुर की एक .. तदा पडियरियत्ति पदोसं वहति।
रानी थी। उस समय सम्यक् प्रकार से परिचर्या न होने के
कारण वह त्रिपृष्ठ के प्रति द्वेष से भर गई। तं दिव्वं वेयणं अहियासंतस्स भगवतो ओही कटपूतना द्वारा दी गई वेदना महावीर सहन कर रहे विगसिओ। सव्वं लोगं पासितुमारखो। सेसं कालं थे। ऐसा करते-करते महावीर का अवधिज्ञान अधिक गब्भातो आढवेत्ता जाव सालिसीसं ताव विकसित हो गया। उसमें वे सम्पूर्ण लोक को देखने लगे। सुरलोगप्पमाणो ओही। एक्कारस य अंगा। गर्भकाल से लेकर शालिशीर्ष ग्राम तक महावीर का सुरलोगप्पमाणमेत्ता, जावतियं देवलोगेसु अवधिज्ञान देवलोक तक जान सके उतना ही था। पेच्छिताइता।