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खण्ड-२
आत्मा का दर्शन ५२.उच्चालइय णिहणिंसु
अदुवा आसणाओ खलइंसु। वोसट्ठकाए पणयासी
दुक्खसहे भगवं अपडिण्णे॥
कुछ लोग ध्यानस्थ भगवान को ऊंचा उठाकर नीचे गिरा देते। कुछ लोग आसन से स्खलित कर देते। किंतु भगवान शरीर को विसर्जन किए हए, आत्मा के लिए समर्पित, कष्ट सहिष्णु और सुख प्राप्ति के संकल्प से मुक्त थे।
५३.एवं विहरता भद्दियं णगरी गता। तत्थ वासारत्ते
चउम्मासक्खमणेण अच्छति. विचित्तं तवोकम्म ठाणादीहिं।
अनार्य देश में विहरण कर महावीर भद्दिया नगरी में आए। वहां वर्षावास किया। चातुर्मासिक तप और नाना प्रकार के आसनों का प्रयोग किया। .
५४.ताहे बाहिं पारेत्ता विहरंतो कदली नाम गामो।
नगरी के बाहर पारणा कर महावीर कदली ग्राम गए।
साधना का छट्ठा वर्ष
महावीर कदलीग्राम से जंबूषण्ड ग्राम में गए।
५५.ततो भगवं जंबुसंडं णामं गामं गतो।
५६.पच्छा तंबायं णाम गामं एंति। तत्थ णंदिसेणा जंबूषण्ड से तंबाय ग्राम में गए। वहां नंदिषेण नाम के
णाम थेरा बहुस्सुया बहुपरिवारा। ते तत्थ पापित्यीय बहुश्रुत स्थविर थे। उनका विशाल शिष्य जिणकप्पस्स पडिकम्मं करेंति पासावच्चिज्जा। परिवार था। वे जिनकल्प की साधना कर रहे थे। इमेवि बाहिं पडिमं ठिता।
महावीर ग्राम के बाहर प्रतिमा में स्थित हो गये।
विजया-प्रगल्भा ५७.ततो पच्छा कूविया णाम संनिवेसो। तत्थ गता।
तेहिं चारियत्तिकाऊण घेप्पंति। तत्थ बज्झंति पिटिजंति य। तत्थ लोगसमुल्लावो अपडिरूवो देवज्जतो रूवेण य जोव्वणेण य चारिओत्ति गहियो।
तत्थ विजया पगब्भा य दोन्नि पासंतेवासिणीओ परिव्वाइया सोऊण लोगस्स तित्थगरो इतो वच्चामो, ता पुलएमो।
तंबाय सन्निवेश से महावीर कपिय सन्निवेश में गए। वहां उन्हें गुप्तचर समझ पकड़ लिया गया। बांधा और पीटा गया। ___ लोग परस्पर कहने लगे यह देवार्य रूप और यौवन से अद्वितीय है, फिर भी यह गुप्तचर के रूप में पकड़ा गया है।
उसी सन्निवेश में दो परिखाजिकाएं थीं। उनका नाम था-विजया और प्रगल्भा। वे पहले पार्श्वनाथ की परम्परा में साध्वियां रह चुकी थीं। लोगों के मुंह से तीर्थंकर महावीर के आगमन की बात सुन वे हर्षित हुईं। वे वहां गईं।
महावीर को जानकर आरक्षकों से कहा-दुरात्मन! क्या तुम लोग नहीं जानते ये चरम तीर्थंकर हैं. सिद्धार्थराज के पुत्र हैं।
उन्होंने तत्काल महावीर को मुक्त कर दिया और क्षमायाचना की।
को जाणति होज्जा? ताहिं मोतितो। दुरप्पा! ण जाणह चरिमतित्थकरं सिद्धत्थ-रायसुतं।.......
ताहे मुक्का खामिया य।