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उद्भव और विकास
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गया कदायि गामि पविट्ठेण णिवासी ण लपुव्वो । जेण उवस्सतो ण लद्धो तेण गामो ण लखो चैव भवति ।
केह खलयंति आयावणभूमीतो जत्थ वा अन्नत्थ ठिओ सिणो वा । केति पुण एवं वेवमाणो हणेत्ता आसणातो वा खलित्ता पच्छा पाए पडितुं खमिति ।
४६. लाढेहिं तस्सुवसम्गा
अह लूहदेसिए भत्ते
कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवतिंसु ॥
४७. अप्पे जणे णिवारेड
छुछुरंत हं
४८. एलिक्खए जणे भुज्जो
लट्ठ गाय णालीयं
४९. एवं पि तत्थ विहरंता
संलुंचमाणा सुणएहिं
बहवे जाणवया लूसिंसु ।
५१. मंसाणि छिन्नपुव्वाई,
परीसहाई लुंचिसु
लूसणए सुणए दसमाणे ।
• समणं कुक्कुरा डसंतुत्ति ॥
बहवे वज्जभूमि फरुसासी ।
समणा तत्थ एव विहरिंसु ॥
पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणएहिं ।
दुच्चरगाणि तत्थ लाढेहिं ॥
५०. हयपुव्वो तत्थ दंडेण
अदुवा मुट्ठिणा अदु कुंताइ-फलेणं । अदु लुणा कवाणं
हंता - हंता बहवे कंदिंसु ॥
उभंति एगया कार्य ।
अहवा पंसुणा अवकिरिंसु ॥
अ. २ : साधना और निष्पत्ति
एक बार भगवान एक गांव में गए। वहां ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं मिला। अतः उनके लिए गांव में जाना न जाने के समान हो गया।
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कुछ लोग भगवान को आतापन भूमि से हटा देते जहां कहीं बैठे हों अथवा खड़े हों। कुछ लोग भगवान को पीटकर, आसन से विचलित कर बाद में उनके चरणों में गिर क्षमा मांगते ।
लाद के जनपदों में भगवान ने अनेक उपसर्गों का • सामना किया। उन जनपदों के लोगों ने भगवान पर अनेक प्रहार किए। वहां का भोजन प्रायः रूखा था । कुत्ते भगवान को काट खाते और आक्रमण करते ।
कुत्ते काटने आते या भौंकते तब कोई-कोई व्यक्ति उन्हें रोकता, किन्तु बहुत से लोग श्रमण को कुत्ते काट खाएं, इस भावना से छू-छू कर कुत्तों को बुलाते और भगवान के पीछे लगाते ।
ऐसे जनपद में भगवान ने छह मास तक विहार किया । वज्रभूमि के बहुत से लोग रुक्षभोजी होने के कारण कठोर स्वभाववाले थे। उस जनपद में कुछ श्रमण लाठी और नालिका पास में रख कर विहार करते थे ।
इस प्रकार विहार करनेवाले श्रमणों को भी कुत्ते काट 'खाते और नोच डालते। लाढ़ देश के गांवों में विहार करना सचमुच कठिन था ।
वहां कुछ लोग दंड, मुष्टि, भाला आदि शस्त्र, चपेटा, 'मिट्टी के ढेले और कपाल (खप्पर) से भगवान पर प्रहार कह हंत! हंत! कहकर चिल्लाते।
कुछ लोग मांस काट लेते। कभी-कभी शरीर पर थूक देते। प्रतिकूल परीषह देते। कभी-कभी उन पर धूल डाल देते।