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________________ आत्मा का दर्शन खण्ड-२ महल्लस्स भातुगस्स पेसिया। दोनों को बंदी बना बड़े भाई के पास भेज दिया। तेण जं चेव भगवं दिवो तं चेव उठेत्ता पूतितो। मेघ ने ज्योंही भगवान को देखा, उठकर अभिवादन खामितो य। तेण सामी कंडग्गामे दिठेल्लओ। किया और इस अपराध के लिए उनसे क्षमा मांगी। उसने कुंडग्राम में पहले महावीर को देखा था, इसलिए इन्हें पहचान कर मुक्त कर दिया। अनार्य देश में जनपद विहार ४२.भगवं चिंतेति-बहुं कम्मं निज्जरेयव्वं लाढाविसयं वच्चामि। ते अणारिया। तत्थ णिज्जरेमि। महावीर ने सोचा-मुझे विपुल कर्मों की निर्जरा करनी है, अतः लाढ़ देश में जाऊं। वहां अनार्य-आदिवासी लोग रहते हैं। निर्जरा का विशेष अवसर प्राप्त होगा। महावीर ने किसान के दृष्टांत को सामने रखा। वहां से विहार कर वे लाढ़ प्रदेश में पहुंचे। तत्थ भगवं अत्थारिय दिठंतं हिदए करेति। ततो भगवं निम्गतो लाढाविसयं पविठो। ४३.अह दुच्चर-लाढमचारी वज्जभूमिं च सुब्भभूमिं च। पंतं सेनं सेविंसु आसणगाणि चेव पंताइं॥ _दुर्गम लाढ़देश के वज्रभूमि और सूम्हभूमि प्रदेशों में भगवान ने विहार किया। वहां उन्होंने तुच्छ बस्ती और तुच्छ आसनों का सेवन किया। ४४.अणगर-जणवओ पायं सो विसओ।......लूसगेहिं उस देश में नगर, जनपद आदि नहीं के बराबर थे। सो कट्ठमुदिठप्पहारादिएहिं अणेगेहिं य लूसंति। हिंसक व्यक्ति काष्ठ, मुष्टि आदि से उन पर प्रहार करते। एगे आहु-दंतेहि खायंतेति, किंच-अहा लूहदेसिए कुछ कहते इन्हें दांतों से काट लो। इसका हेतु था-वहां भत्ते, तसे पाएण रुक्खाहारा तैलघृत-विवर्जिता का रूखा खान-पान। वे तैल, घृत से रहित भोजन करते। रूक्षाः ।..... रूक्षं गोवालहलवाहादीणं सीतकूरो, आमंतेणऊणं वाले, खेतिहर आदि लोग आम्लरस के साथ ठंडा अंबिलेण अलोणेण एए दिज्जंति। मज्झण्हे __ भोजन करते। उनका भोजन नमक रहित होता था। लुक्खएहिं माससहाएहिं तं पिणाति प्रकाम। मध्याह्न के भोजन में उड़द सहित सूखे चावल खाते थे। ण तत्थ तिला संति। ण गावीतो बहुगीतो, वहां तिलों की खेती नहीं होती थी। वहां बहुत गाएं कप्पासो वा। नहीं थीं और रूई भी नहीं थी। तणपाउरणातो ते। परुक्खाहारत्ता अतीव कोहणा, वे घास से अधोभाग को ढकते थे। अत्यधिक रुस्सिता अक्कोसादी य उवसग्गे करेंति। रूक्षभोजी होने के कारण वे स्वभावतः अतिक्रोधी थे। बात-बात में लड़ पड़ते। अपने इस चंड स्वभाव के कारण वे रुष्ट होकर भगवान को गाली देते और नाना प्रकार के उपसर्ग करते। ४५. कारणेण गाममणियंतियं गामब्भासते लाढा लाढ़देश के एक गांव में भगवान जा रहे थे, उन्हें पडिणिक्खमेत्तु लूसेंति। णग्गा! तुमं किं अम्हं गामं देख कुछ लोग कर्कश भाषा में बोले ओ नग्न ! तुम हमारे पविससि? गांव में क्यों आ रहे हो? यहां से चले जाओ। १. देखें, आवश्यक चूर्णि १, पृ. २९६
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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