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आत्मा का दर्शन
. सो य बितियाए भावेति ।
गोसालो य भगवं भणति - एह देसकालो हिंडामो।
सिद्धत्थो भणति - अज्ज अम्हं अंतरं । सो हिंडतो ते पासावच्चिज्जे थेरे पेच्छति । भणति के तुब्भे ?
भति-समण णिग्गंथा ।
सो भणति - अहो निम्गंथा ! इमो भे एत्तिओ गंथो । कहिं तुब्भे निम्गंथा ? सो अप्पणो आयरियं वन्नेति, एरिसो महप्पा । तुब्भेत्थ के ?
३३.
ताहे तेहिं भन्नति - जारिसओ तुमं तारिसओ धम्मायरियओऽवि सयंगिहितलिंगो ।
ताहे सो रुट्ठो । ताहे सो गतो सामिस्स साहतिअज्जम सारंभा सपरिग्गहा दिट्ठा ।
३४. ताहे सामी ततो चोरागसन्निवेसं गता ।
३५. ततो भगवं पिट्ठीचंपं गतो । तत्थ वासावासं पज्जोसवेइ । चउम्मासियखमणं च वयं विचित्तं पडिमादीहिं ।
स्थविर दरिद्र
३६. बाहिं पारेत्ता कतंगलं गतो । तत्थ दरिद्दथेरा णाम पासंडत्था सारंभा समहिला । ताण वाडगस्स मज्झे देउलं । तत्थ सामी पडिमं ठितो ।
तद्दिवसं च सफुसितं सीतं पडति । ताणं च तद्दिवसं जागरओ । ते समहिला जागरओ गायंति ।
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खण्ड - २
स्थविर मुनिचन्द्र सत्त्व भावना के दूसरे प्रकार का उपाश्रय के बाहर रहकर अभ्यास कर रहे थे। सूर्योदय होने पर गोशालक ने महावीर से कहा- चलो, हम भिक्षा के लिए चलें । सिद्धार्थ ने कहा- आज तपस्या है।
गोशालक ने भिक्षा में घूमते हुए पार्श्वापत्यीय श्रमणों को देखा और पूछा- तुम कौन हो ?
उन्होंने कहा- हम श्रमण निर्ग्रथ हैं।
गोशालक ने साश्चर्य कहा - अहो ! तुम निग्रंथ हो ! तुम्हारे पास तो इतना परिग्रह है। तुम निर्ग्रथ कैसे हुए ? महावीर का गुणानुवाद करते हुए उसने कहा-निर्ग्रथ तो वे महात्मा हैं। | तुम कौन हो निग्रंथ ?
तत्थ गोसालो भणति - एसोऽवि णाम पासंडो भवति सारंभो समहिलो य सव्वाणि य एगट्ठाणि गायंति य ?
ता सो तेहिं बाहिं णिच्छूढो ।
साधना का पांचवा वर्ष
स्थविरों ने कहा- जैसा तू है, वैसा ही तेरा धर्माचार्य है, जो अपने आप मुनि बन गया ।
गोशालक यह सुन रुष्ट हो गया। उसने श्रमणों के साथ हुई वार्ता महावीर को सुना दी।
महावीर कुमाराक सन्निवेश से चोराक सन्निवेश में गए।
महावीर पृष्ठचंपा गए। वहां वर्षावास किया । चातुर्मासिक तप किया- पूरे चातुर्मास में आहार नहीं किया । नाना प्रकार की प्रतिमाओं का प्रयोग किया।
नगर के बाहर पारणा कर महावीर ने कृतांगला की ओर विहार किया।
कृतांगला में दरिद्र स्थविर नाम के श्रमण रहते थे। वे खेती आदि करते थे। स्त्रियां रखते थे। उनके बाड़े में एक देवस्थान था। महावीर वहां प्रतिमा में स्थित हो गए।
उस दिन ठंडक थी। पाला पड़ रहा था । श्रमणों के रात्रि जागरण था। वे महिलाओं सहित जागरण गीत गा रहे थे।
उन्हें देख गोशालक ने कहा- ऐसे भी कोई श्रमण होते हैं जो आरम्भ करते हैं, स्त्रियों को रखते हैं और एक साथ मिलकर गाते हैं।
गोशालक के ऐसा कहने पर श्रमणों ने उसे बाहर