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उद्भव और विकास
२७. ततो सामी णिग्गतो चंपं गतो । तत्थ वासावासं ठाति । तत्थ दूमासक्खमणेण ठाति । चत्तारिवि मासे विचित्तं तवोकम्मं ठाणादिए पडिमं ठाइ । ठाणुक्कुडुए एवमादीणि करेति । तत्थ चत्तारि मासे वसित्ता चरिमं दोमासियापारणयं तं बाहि पारेति ।
२८. ताहे कालायं णाम संनिवेसं तत्थ वच्चति । ...... भगवं सुन्नघरे पडिमं ठितो ।
२९. ततो निम्तो सामी पत्तकालयं नामं गामो तत्थ गतो। तत्थवि तहेव सुन्नघरे ठितो ।
स्थविर मुनिचन्द्र
३०. ततो कुमारायं संनिवेंखं गता । तस्स बहिया चंपरमणिज्जं नाम उज्जाणं । तत्थ भगवं पडिमं ठितो।
तत्थ कुमाराए संनिवेसे कूवणओ णाम कुंभकारो । तस्स कुंभारावणे पासावच्चिज्जा मुणिचंदा णाम थेरा बहुसुता बहुपरिवारा। ते तत्थ परिवसंति। ते य जिणकप्पपरिकम्मं करेंति सीसं गच्छे ठवेत्ता । ते सत्तभावणाए अप्पाणं भावेंति ।
साधना का चौथा वर्ष
जिनकल्प की पांच तुलाएं
३१. तवेण सत्तेण सुत्तेण, एगत्तेण बलेण य । तुलणा पंचहा वुत्ता, जिणकप्पं पडिवज्जतो ॥
ताओ भावणाओ, ते पुण सत्तभावनाए भावेंति
३२.पढमा उवसयंमि
बितिया बाहिं ततिया चतुक्कम्मी ।
तह पंचमिया मसाणंमि ॥
सुन्नघरंमि चउत्थी
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अ. २ : साधना और निष्पत्ति
भात लेकर आई। गोशालक ने लेने से इन्कार कर दिया।
महावीर चंपा में गए। वहां चातुर्मास किया । दोमासी तप (दो महीने का उपवास) किया। चार ही महीने विचित्र तप चला। प्रतिमा और उत्कटुक आदि आसनों का प्रयोग किया। चार मास वहां रहकर दूसरे दो मासी तप का पारणा नगर के बाहर किया।
महावीर चंपा से विहार कर कालाय सन्निवेश में गए। शून्यगृह में प्रतिमा में स्थित हो गए।
महावीर पत्रकालय नाम के ग्राम में गए शून्यगृह में ठहरे।
पत्रकालय ग्राम से विहार कर महावीर कुमाराक सन्निवेश में ठहरे। उसके बाहर चंपक रमणीय उद्यान था। महावीर वहां प्रतिमा में स्थित हो गए।
कुमाराक सन्निवेश में कूपनय नाम का कुम्भकार था । उसकी कुम्भकारशाला में पार्श्वपत्यीय बहुश्रुत स्थविर मुनिचन्द्र अपने शिष्य परिवार के साथ ठहरे हुए थे। वे अपने शिष्य को गच्छाधिपति बनाकर जिनकल्प की • साधना कर रहे थे । वे सत्त्व भावना से अपने आपको भावित कर रहे थे।
तप, सत्त्व, सूत्र, एकत्व और बल- जिनकल्प स्वीकार करनेवालों के लिए ये पांच तुला (भावना ) होती हैं।
इन भावनाओं में से मुनिचन्द्र के सत्त्व भावना का
अभ्यास चल रहा था।
सत्त्व भावना के पांच प्रकार हैं। पहली का अभ्यास रात्रि के समय उपाश्रय के भीतर, दूसरी का उपाश्रय के बाहर, तीसरी का चौराहे पर, चौथी का शून्यगृह में और पांचवीं का श्मशान में किया जाता है।