________________
आत्मा का दर्शन
अन्ना' । लज्जिओ आगतो।
२४. चउत्थे मासक्खमणे भगवं णालंदाओ निग्गतो कोल्लागं गतो । तत्थ बहुलो माहणो माहणे भोजावेति । भगवं च अणेण मधुघयसंजुत्तेण परमन्त्रेण पडिलाभितो। पंच दिव्वाई।
ग्वाला और खीर
२५. तासामी ते समं वासावगमाओ सुवन्नखलयं वच्चति । तत्थंतरा गोवालगा वइयाहिंतो खीरं गहाय महल्लीए थालीए णवएहिं चाउलेहिं पायसं उवक्खडेंति ।
ता गोसालो भणति - एह एत्थ भुंजामो ।
ताहे सिद्धत्थो भणति - एस निम्माणं चेव ण गच्छति । एस उरु भज्जिहिति ।
ताहे सो असदहंतो ते गोवए भणइ एस देवज्जतो तीताणागतजाणतो, भणति - एस थाली भज्जिहिति । तो पयत्तेण सारवेह । ताहे पयत्तं करेंति । वंसविदलेहि य थाली बद्धा ।
साधना का तीसरा वर्ष
तेहिं अतिबहुया तंदुला छूढ़ा । सा फुट्टा । पच्छा गोवा जं जेण कभल्लं आसाइतं सो तत्थ चेव पजिमितो | तेण ण लब्द्धं । ताहे सुठुतरं नियती गहिता ।
खण्ड - २
होता है, अन्यथा नहीं होता। वह अपने स्थान पर लौट
आया ।
नंद और उपनंद
२६. ताहे सामी बंभणागामं पत्तो । तत्थ णंदो उवणंदो य दोन्नि भातरो । गामस्स दो पाडगा । तत्थ एगस्स एगो इतरस्सवि एगो ।
तत्थ सामी णंदस्स पाडगं पविट्ठो णंदघरं च । तत्थ दवि दोसीणेण य पडिलाभितो णदेण । गोसालो उवणंदस्स ।
तेण उवर्णदेण संदिट्ठ- देह भिक्खत्ति, तत्थ अदेसकाले सीतकूरो णिणितो । सो तं ण इच्छति ।
५८
चतुर्थ मासखमण में नालंदा से विहार कर महावीर कोल्लाक सन्निवेश में आए। वहां बहुल नाम का ब्रह्म था। वह ब्राह्मणों को भोजन करवा रहा था। उसने महावीर को शर्करा और घृत युक्त खीर का दान दिया। पांच दिव्य प्रकट हुए।
चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् महावीर ने कोल्लाक सन्निवेश से सुवर्णखल की ओर विहार किया। रास्ते में ग्वाले गोकुल से दूध लेकर आए। एक बड़ी हांडी में नए चावलों से खीर पकाने लगे।
गोशालक ने कहा- आओ, यहां भोजन करके चलें । सिद्धार्थ ने कहा- यह खीर बनेगी ही नहीं। इस हांडी का पैंदा फूट जाएगा।
गोशालक ने इस वचन पर अश्रद्धा करते
हुए वालों से कहा- यह देवार्य अतीत और अनागत का ज्ञाता है। यह कह रहा है हांडी फूट जाएगी। इसलिए प्रयत्नपूर्वक इसकी रक्षा करना। ग्वाले सावधान हो गए। हांडी को बांस की खपचियों से बांध दिया।
ग्वालों ने हांडी में चावल अधिक डाल दिए। हांडी फूट गई। हांडी के टुकड़ों में जो खीर बची थी, उसे ग्वालों ने खा लिया। गोशालक को कुछ नहीं मिला। उस दिन से उसे नियतिवाद पर और अधिक विश्वास हो
गया।
महावीर ब्राह्मण ग्राम में गए। वहां नंद और उपनंद दो भाई थे। गांव के दो पाड़े (मुहल्ले ) थे। एक का नाम नंद पड़ा और दूसरे का नाम उपनंद पड़ा ।
महावीर नंद पाड़ा में नंद के घर गए । नंद ने दधिमिश्रित चावलों की भिक्षा दी।
गोशालक उपनंद के घर गया। उपनंद ने अपनी दासी को भिक्षा देने का आदेश दिया। दासी उसके लिए ठंडे