________________
'उद्भव और विकास
अ. २ : साधना और निष्पत्ति
गोशालक का मिलन १८.ततो सामी रायगिहं गतो। तत्थ णालंदाए महावीर राजगृह गए। राजगृह की बाहिरिका नालंदा
बाहिरियाए तंतुवायसालाए एगदेसंसि अहापडिरूवं में पहुंचे। तंतुवाय शाला में यथायोग्य स्थान की याचना उम्गहं अणुन्नवेत्ता पढमं मासक्खमणं विहरति। कर उसके एक भाग में ठहरे। एक मास की तपस्या. एत्थंतरा मंखली' एति। जत्थ सामी ठिओ तत्थ ___प्रारम्भ की। इस बीच मंखलीपुत्र गोशालक वहां आ एगदेसंमि वासावासं उवगतो।
गया। जहां महावीर ठहरे थे वहीं वह चातुर्मास के लिए एक भाग में ठहर गया।
१९. भगवं मासखमणपारणए अभिंतरियाए विजयस्स
घरे विपुलाए भोयणविहीए पडिलाभितो। तत्थ पंच दिव्वाणि।
महावीर के एक मास की तपस्या का पारणा विजय के घर विविध भोजन सामग्री से हुआ। पांच दिव्य प्रकट
२०.भणति य वंदित्ता-अहं तुम्भं सीसोत्ति। सामी
तुसिणीओ णिम्गतो।
गोशालक ने महावीर को वंदन कर कहा-मैं आपका शिष्य हूं। आप मुझे स्वीकार करें। महावीर मौन रहे।
२१.वितियं मासक्खणं ठितो। बितिय पारणए
आणंक्स्स घरे खज्जगविधीए।
महावीर ने दूसरी बार एक मास की तपस्या प्रारम्भ । की। दूसरे मासखमण का पारणा आनन्द के घर खाद्य मिष्टान्न से किया।
. २२.ततिए सुदंसणस्स घरे सव्वकामगुणिएणन्ति।
तीसरे मासखमण का पारणा सुनंद के घर अनेक द्रव्यों से किया।
२३.भगवं चउत्थं मासक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं चतुर्थ मासखमण चल रहा था। कार्तिक पूर्णिका के
विहरति। गोसालो य कत्तियपण्णिमाए दिवसओ दिन भिक्षा के लिए जाते हुए गोशालक ने पूछा-आज मुझे पछति-किमहं अज्ज भत्तं लभेज्ज ति? क्या भोजन मिलेगा? सिद्धार्थ ने कहा कोदो धान, सिळत्येण भणितं-कोहवअंबिलसित्थाणि कडग- अम्लसीथ (खट्टी छाछ) और दक्षिणा में खोटा रुपया। रूवगं च दक्षिणं। ताहे सो सव्वादरेण हिंडति.... ण गोशालक भिक्षा के लिए घूमने लगा। उसे कहीं भी भिक्षा कहिंवि संभाइयं।
नहीं मिली। ताहे अवरण्हे एगेण से कम्मारएण दिन्नं, ताहे घूमते-घूमते अपराह्न को एक लुहार ने उसे भोजन जिमितो। रूवओ य से दक्खिणं दिनो। तेण दिया और दक्षिणा में रुपया दिया। जब रुपये का परीक्षण परिक्खावितो जाव कूडओ।
करवाया तब वह खोटा निकला। ताहे भणति-जेण जहा भवियव्वं ण तं भवइ गोशालक ने कहा-जो जैसा होना है, वह वैसे ही
१.मंखली नाम का मंख (डाकोत) था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। एक बार वे एक ब्राह्मण की गोशाला में ठहरे। भद्र ने वहां
पुत्र को जन्म दिया इसलिए बच्चे का नाम गोशालक रखा गया। मंख का पुत्र होने के कारण उसका दूसरा नाम मंखली था।
(आवचू. १ पृ. २८२) २. भगवती सूत्र में सुदंसण के स्थान पर सुनंद नाम है। इसलिए अनुवाद में सुनंद रखा गया है। .