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आत्मा का दर्शन
खण्ड-२
तेहिं तत्थ गतेहिं सामी प्रतितो य वंदितो य।......
प्रदेशी के पास जा रहे थे। उन्होंने महावीर की अर्चा और वंदना की।
नौका विहार
१६.ततो सुरभिपुरं गतो। तत्थ गंगा उत्तरियब्विया। महावीर सुरभिपुर गए। बीच में गंगा नदी आ गई।
तत्थ सिद्धदत्तो णाम णाविओ। खेमिलो उन्हें गंगा को पार करना था। वहां एक नाविक था। नेमित्तिओ। तत्थ य णावाए लोगो विलग्गति। तत्थ उसका नाम था सिद्धदत्त। एक खेमिल नाम का नैमित्तिक य कोसिएण महासउणेण वासितं। तत्थ सो भी वहां उपस्थित था। ज्योंही नौका चलने लगी कि उल्लू नेमित्तिओ वागरेति-जारिसं सउणेण भणियं तारिसं की आवाज का शकुन हुआ। उसे सुन नैमित्तिक ने अम्हेहि मारणंतियं पावियव्वं, किं पुण? इमस्स कहा-शकुन का जो स्वर है उसका फल है कि नौका पर . महरिसिस्स पभावेण मुच्चीहामो। पमावण मुच्चाहामो।
चढ़े हुए लोग मरणांत स्थिति में पहुंच सकते हैं। पर इस
महाऋषि के प्रभाव से हम अवश्य बच जाएंगे। .. . सा य णावा पहाविता। एत्थंतरा सदाढेण नौका आगे बढ़ी। उस समय सुदाढ़ नागकुमार ने णागकुमारेणाभोइतं। तेण विट्ठो सामी। तं वेरं अवधिज्ञान का प्रयोग किया और महावीर को देखा। , सरित्ता कोवो जातो। सो य किर सीहो। पूर्वजन्म की स्मृति हुई। वह कुपित हो गया। पूर्वजन्म में वासुदेवत्तणे मारितेल्लओ। सो तं संसारं चिरं वह सिंह था और महावीर उस समय त्रिपृष्ठ वासुदेव थे। भमित्ता सुदाढो णागो जातो। सो संवट्टगवातं वासुदेव ने सिंह को मारा था। वह संसार भ्रमण करते हुए विउव्वित्ता णावं उब्बोलेतुं इच्छति।
सुदाढ़ नाम का नागकुमार हो गया। उसने तूफान उत्पन्न
किया और नौका.को डूबोना चाहा। इतो य कंबल-संबला दो नागकुमारा तं इधर कंबल और संबल दो नागकुमारों ने भी . आभोएंति।......एगेण णावा गहिता। एगो सुदाढेण अवधिज्ञान का प्रयोग किया। डगमगाती नौका और उसमें समं जुज्झति।
महावीर को देखा। दोनों वहां आए। एक ने नौका को हाथ
में थामा और दूसरा सुदाढ़ के साथ लड़ने लगा। सो महिछीओ। तस्स पुण चयणकालो। इमे य सुदाढ़ अधिक ऋद्धि एवं शक्तिसम्पन्न था। किन्तु अहणोववन्नगा। सो तेहिं पराजितो।
उसका च्यवनकाल (मरणकाल) आसन्न था। कंबल और संबल दोनों अभी-अभी देव बने थे। उन्होंने सुदाढ़ को पराजित कर दिया। सब लोग कुशलक्षेम नदी के पार
पहुंच गए। सामुद्रिक पुष्य की घोषणा १७.ततो भगवं उदगतीराए पडिक्कमितं पत्थिओ। भगवान गंगा के किनारे से होकर गुजरे। चिकनी .
गंगामट्टियाए य तेण मधुसित्थेण लक्खणा मिट्टी में उनके पदचिह्न हो गए। वहां पुष्य नाम का एक दीसंति। तत्थ पूसो णाम सामुद्दो। सो ताणि सामुद्रिक रहता था। उसने पदचिह्नों को देखकर सोचा, सोचिते लक्खणाणि पासति। ताहे एस चक्कवट्टी यह चक्रवर्ती होगा। यह अकेला कैसे? मैं इसके पास जाऊं एगागी गतो। बच्चामिणं वागरेमि तो मम एत्तो और इसे चक्रवर्ती होने की बात बताऊं। मुझे इससे अच्छी भोगवत्ती भविस्सति। सेवामि णं कुमारत्ते। __ आजीविका मिलेगी। अभी यह कुमार है। मैं सेवा में रहूं। सामीवि थुणागसंनिवेसस्स बाहिं पडिमं ठितो। महावीर ने स्थूनाक सन्निवेश के बाहरी भाग में प्रतिमा
की साधना की।