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उद्भव और विकास
अ. २ : साधना और निष्पत्ति
.. सिद्धत्यो भणति-से ण किंचि जाणति।
सिद्धार्थ ने कहा-वह कुछ नहीं जानता। . ताहे लोगो गंतुं भणति-तुमं ण किंचि जाणसि, लोग अच्छंदक के पास गए और बोले-तुम कुछ नहीं देवज्जतो जाणति।
जानते हो, देवार्य जानता है। सो लोगमज्झे अप्पाणं ठाविउकामो भणति-एह अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए उसने लोगों से जामो। जदि मज्झ जाणति तो जाणति।
कहा-आओ, हम चलें। यदि वह मेरे मन की बात जानता
है तो जानकार है। ताहे लोगेण परिवारितो एति। भगवतो पुरतो लोगों को साथ ले वह महावीर के सम्मुख उपस्थित दिठतो। तणं गहाय भणति-किं एतं छिज्जिहिति? हुआ। अच्छंदक हाथ में तिनका ले महावीर से जइ भणिहिइ छिन्जिहिइ, तो ण च्छिंदिस्स। अह । बोला-क्या यह टूटेगा? उसने मन ही मन सोचा यदि यह भणिहिति णवि, तो छिंदिस्सामि। .
देवार्य कहेगा कि तिनका टूटेगा तो मैं इसे नहीं तोडूंगा
और नहीं टूटने का कहेगा तो मैं इसे तोड़ दूंगा। . सिद्धत्येण भणितं-ण छिन्जिहिति। आढत्तो सिद्धार्थ ने कहा नहीं टूटेगा। अच्छंदक तिनका छिंदितुं। सक्केण य उवओगो दिन्नो। ताहे तोड़ने लगा। उसी समय इन्द्र एकचित्त हुआ। वह अच्छंदगस्स कुवितो।
अच्छंदक पर कुपित हो गया। तिनका नहीं टूटा। ताहे सो अप्पसागारियं आगतो भणति-भगवं! एक दिन अच्छंदक एकांत प्राप्त कर महावीर के पास • तुम्मे अण्णत्थवि जुज्जह, अहं कहिं जामि? आया और बोला-भगवान्। आप तो अन्यत्र भी पूज्य हो
सकते हैं। मैं कहां जाऊं? ताहे अचियत्तोम्गहोत्ति काऊण सामी निम्गतो। ___ यह स्थान अप्रीतिकर है, ऐसा सोच महावीर ने आगे
प्रस्थान कर दिया। दक्षिण वाचाला : उत्तर वाचाला १३.ताहे ततो निग्गतो समाणो दो वाचालातो महावीर वहां से वाचाला की ओर जा रहे थे। वाचाला
दाहिणवाचाला य उत्तरवाचाला य। तासिं दोण्हं के दो भाग थे-उत्तर और दक्षिण। दोनों वाचाला के मध्य अंतरा दो णदीओ-सवन्नकला य रुप्पकूला य। दो नदियां बहती थीं-सुवर्णकूला और रूप्यकूला। महावीर ताहे सामी दक्खिणवाचालाओ उत्तरवाचालं ने दक्षिण वाचाला से उत्तर वाचाला की ओर प्रस्थान वच्चति।.........
किया। (तत्य अंतरा कणकखलं णाम आसमपदं।
मार्ग में कनकखल नाम का आश्रम था। पच्छा सामी उत्तरवाचालं गतो। तत्थ पक्ख- महावीर उत्तर वाचाला पहुंचे। पन्द्रह दिन की तपस्या खमणपारणए अतिगतो। तत्थ णागसेणेण का पारणा किया। नागसेन गृहपति ने खीर का दान दिया। गाहावतिणा खीरभोयणेण पडिलाभितो। तत्थ पंच पांच दिव्य प्रकट हुए। दिव्वाणि।
१४.पच्छा सेयवियं गतो। तत्थ पएसी राया
समणोवासए। सो महेति, सक्कारेति।
महावीर श्वेतविका नगरी में गए। वहां का राजा था प्रदेशी। वह अर्हत् पार्श्व की परम्परा का श्रमणोपासक था। उसने महावीर की अर्चा की और सत्कार किया।
'१५.ततो सुरभिपुरं वच्चति। तत्थ अंतराए णेज्जगा
रायाणो पंचहिं रहेहिं एंति पएसिस्स रन्नो पासं।
महावीर ने सुरभिपुर की ओर विहार किया। मार्ग में ' पांच रथारूढ़ नैयक (न्यायविशारद) राजे मिले। वे राजा