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________________ आत्मा का दर्शन ५४ खण्ड-२ ९. धन्नो सो लोहज्जो धन्य है वह स्वर्णाभ शरीरवाला लोहार्य श्रमण ___ खंतिखमो पवरलोहसरिवन्नो। जिसके पात्र में लाया हुआ भोजन महावीर अपने हाथ में जस्स जिणो पत्ताओ लेकर करते हैं। इच्छइ पाणीहिं भोत्तुं जे॥ १०.तत्थ अद्धमासं अच्छित्ता ततो पच्छा मोराक सन्निवेश में पन्द्रह दिन रहकर महावीर अट्ठियग्गामं वच्चति। तस्स पुण अठ्यिगामस्स अस्थिग्राम गए। अस्थिग्राम का पूर्व नाम वर्धमान था। पढमं वद्धमाणयं णाम होत्था। तत्थ सामी चत्तारि भगवान ने पहला चातुर्मास अस्थिग्राम में किया। उस मासे अद्धमासं खममाणो एतं पढमं समोसरणं चातुर्मास में उन्होंने पन्द्रह-पन्द्रह दिन की तपस्या का पारणा किया। साधना का दूसरा वर्ष ११.पच्छा सरदे निग्गओ मोरायं नाम सन्निवेसं गओ। शरद् ऋतु का समय। भगवान अस्थिग्राम से मोराक तत्थ सामी बहिं उज्जाणे ठिओ। सन्निवेश गए। बाहर उद्यान में ठहरे। वुच्छो । तांत्रिक अच्छंदक १२.तत्थ य मोरागए सन्निवेसे अच्छंदगा नाम पासंडत्था। तत्थ एगो अच्छंदओ तत्थ गामे अच्छइ। सो पुण तत्थ गामे कोंटलवेंटलेण जीवति। सिद्धत्थगो एकल्लओ अच्छंदओ अद्धिति करेति बहुसंमोइतो, य भगवतो पूर्य अपेच्छंतो। ताहे सो बोलेंतं गोहं सहावेत्ता वागरेति-जहिं पधावितो जंजिमितो जं पंथे दिळं जेय सविणगा दिट्ठा। ताहे सो आउट्टो गामं गंतं मित्तपरिजिताण परिकहेति। सव्वहिं गामे फुसितं। एस देवज्जतो उज्जाणे अतीतवट्टमाणाणागतं जाणति। ताहे अन्नोऽवि लाओ आगतो। सव्वस्स वागरेति। लोगो तहेव आउट्टो महिमं करेति। सो लोगेण अविरहितो अच्छति। ताहे सो लोगो भणइ-एत्थ अच्छंदओ णाम जाणंतओ। मोराक सन्निवेश में अच्छंदक श्रमण रहते थे। एक अच्छंदक गांव में रहता था। वह मंत्र-तंत्र, जादू-टोने आदि के द्वारा जीवन यापन करता था। सिद्धार्थ उद्यान में अकेला रहता था। उसे अकेले रहना अच्छा नहीं लगा। उसने देखा-लोग भगवान की पूजा नहीं कर रहे हैं। उसने गांव के मुखिया को बुलाकर कहा-कौन कहां गया? क्या खाया? क्या मार्ग में देखा? क्या स्वप्न देखा-महावीर इन सबको जानते हैं। मुखिया ने यह बात अपने मित्रों और परिचितों से कही। पूरे ग्राम में यह चर्चा हो गई कि उद्यान में ठहरा हुआ देवार्य अतीत, वर्तमान एवं अनागत का ज्ञाता है। चर्चा सुन दूसरे लोग भी उद्यान में आने लगे। महावीर की महिमा करने लगे। सिद्धार्थ लोगों से घिर गया। लोगों ने कहा-अच्छंदक भी अच्छा जानकार है। १. सिद्धार्थ यक्ष महावीर के प्रति श्रद्धालु था। वह उनकी उपासना में रहा। उसने समय-समय पर आनेवाली स्थितियों का समाधान किया। वह प्रच्छन्न रहकर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दे देता। प्रश्न करने वालों को प्रतीति करवा देता कि ये उत्तर महावीर के द्वारा दिए जा रहे हैं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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