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आत्मा का दर्शन
६४६. अणु-गुरु- देह- पमाणो,
असमुहदो ववहारा,
उवसंहारप्पसप्पदो चेदा ।
णिच्छयणयदो असंखदेसो वा ॥
६४७. जह पउमराय-रयणं,
तह देही देहत्थो,
खित्तं खीरे पभासयदि खीरं ।
सदेहमत्तं पभासयदि ॥
६४८. आदा णाणपमाणं, णाणं णेयप्पमाण-मुद्दिट्ठ । यं लोयालोयं, तम्हा णाणं तु सव्वगयं ॥
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६४९. जीवा संसारत्था, णिव्वादा चेदणप्पगा दुविहा । उवओगलक्खणा वि य, देहादेहप्पवीचारा ॥
६५०. पुढविजलतेयवाऊ
वणफदी विविथावरेइंदी ।
तसजीवा होंति संखादी ॥
बिग-तिग-दु-पंचक्खा,
सृष्टि सूत्र
६५१. लोगो अकिट्टिमो खलु,
अणाइणिहणो सहावणिव्वत्तो । जीवाजीवेहिं फुडो, सव्वागासावयवो णिच्चो ॥
६५२. अपदेसो परमाणू, पदेसमेत्तो य सयमसहो जो । द्धिो वा लुक्खो वा, दुपदेसादित्त - मणुहवदि ॥
६५३. दुपदेसादी खंधा, सुहुमा वा बादरा ससंठाणा । पुढवि-जल- तेउवाऊ, सगपरिणामेहिं जायंते ॥
खण्ड - ५
व्यवहारनय की अपेक्षा समुद्घात अवस्था को छोड़कर संकोच विस्तार की शक्ति से जीव अपने छोटे या बड़े शरीर के बराबर परिमाण (आकार) का होता है। किन्तु निश्चयनय से जीव असंख्यातप्रदेशी है।
जैसे पद्मरागमणि दूध में डाल देने पर अपनी प्रभा से दूध को प्रभासित करती है अन्य पदार्थ को नहीं करती, . वैसे ही जीव शरीर में रहकर अपने शरीर मात्र को प्रभासित करता है - अन्य किसी बाह्य द्रव्य को नहीं ।
(इस प्रकार व्यवहारनय से जीव शरीरव्यापी है, किन्तु ) वह ज्ञान प्रमाण है, ज्ञान ज्ञेयप्रमाण है तथा ज्ञेय लोक- अलोक है, अतः ज्ञान सर्वव्यापी है। ज्ञान -प्रमाण आत्मा होने से आत्मा भी सर्वव्यापी है।
जीव दो प्रकार हैं-संसारी और मुक्त। दोनों ही चेतना स्वभाववाले और उपयोग लक्षणवाले हैं। संसारी जीव सशरीरी होते हैं और मुक्तजीव अशरीरी ।
संसारी जीवों में पृथ्वीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक ये सब एकेन्द्रिय स्थावर जीव हैं और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व पंचेन्द्रिय त्रस जीव हैं।
सृष्टि सूत्र
वस्तुतः यह लोक अकृत्रिम है, अनादिनिधन स्वभाव से ही निर्मित है, जीव व अजीव द्रव्यों से व्याप्त है, संपूर्ण आकाश का ही एक भाग है तथा नित्य है ।
पद्गल - परमाणु अप्रदेशी है और प्रदेश जितना है तथा वह शब्द नहीं है, उसमें स्निग्ध व रूक्ष स्पर्श का ऐसा गुण है कि एक परमाणु दूसरे परमाणुओं से जुड़ने पर दो प्रदेशी आदि स्कन्ध बन जाते हैं।
द्विप्रदेशी आदि सारे सूक्ष्म और बादर (स्थूल) स्कंध अपने परिणमन के द्वारा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु के रूप में अनेक आकारवाले बन जाते हैं।