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समणसुत्तं
३३८. बहवे इमे - असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो । नवे असाहु साहु त्ति, साहु साहु त्ति आलवे ॥
३३९. नाणदंसणसंपण्णं, संजमे य तवे रयं । -गुण-समा संजयं हुवे ॥
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३४०. न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो । न मुणी रण्ण-वासेणं, कुस- चीरेण न तावसो ॥
३४१. समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो । नाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावसो ॥
३४२. गुणेहि साहू अगुणेहिऽसाहू,
गिहाहि साहू - गुण मुंचऽसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं,
जो रागदोसेहिं समोस पुज्जो ॥
३४३. देहादिसु अणुरत्ता, विसयासत्ता कसाय - संजुत्ता । अप्प - सहावे सुत्ता, साहू सम्मपरिचत्ता ॥
३४४. बहुं सुणेइ कण्णेहिं बहुं अच्छीहिं पेच्छइ । न यदिट्ठे सुयं सव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिहइ ॥
३४५. सज्झाय-ज्झाणजुत्ता, रत्तिं ण सुयंति ते पयामं तु ।
सुत्तत्थं चिंतंता, णिद्दाय वसं ण गच्छंति ॥
३४६. निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्त-गारवो । समो य सव्व-भूएस, तसेसु थावरेसु य ॥
अ. २ : मोक्षमार्ग
ऐसे बहुत-से असाधु हैं जो जन साधारण में साधु कहलाते हैं । किन्तु असाधु को साधु नही कहना चाहिए, साधु को ही साधु कहना चाहिए ।
३४७. लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा ।
समो निन्दा - पसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥
ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न संयम और तप में रतइस प्रकार गुण- समायुक्त संयमी को ही साधु कहना चाहिए।
केवल सिर मुंडाने से कोई श्रमण नहीं होता । ओम् का जप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता, कुश-चीवर पहनने से कोई तपस्वी नहीं होता।
समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप से तेजस्वी होता है।
गुणों से साधु होता है और अगुणों से असाधु । अतः साधु गुणों-साधुता को ग्रहण कर और असाधुगुणों-असाधुता को छोड़। आत्मा को आत्मा के द्वारा कर जो राग-द्वेष में सम रहता है, वह पूज्य है।
देह आदि में अनुरक्त, विषयों में आसक्त, कषाय से युक्त तथा आत्मस्वभाव में सुप्त साधु सम्यक्त्व से (अथवा समता से) शून्य होते हैं।
भिक्षुकानों से बहुत सुनता है, आंखों से बहुत देखता है, किन्तु सब देखे और सुने को कहना उसके लिए उचित नहीं है।
स्वाध्याय- ध्यान में रत साधु रात में बहुत नहीं सोते । सूत्र और अर्थ का चिंतन करते हैं, निद्रा के अधीन नहीं होते।
साधु ममत्व-रहित, निरहंकारी, निस्संग, गौरव से रहित तथा त्रस और स्थावर जीवों के प्रति सम रहे ।
वह लाभ अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, निंदा और प्रशंसा में तथा मान-अपमान में सम रहे।