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________________ समणसुत्तं ६८९ अ.२: मोक्षमार्ग २८९. नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, सम्पूर्ण ज्ञान का प्रकाशन, अज्ञान और मोह का नाश अण्णाण-मोहस्स विवज्जणाए। तथा राग-द्वेष का क्षय होने से आत्मा एकान्त सुखमय . रागस्स दोसस्स य संखएणं, मोक्ष को प्राप्त होता है। एगंत-सोक्खं समुवेइ मोक्खं॥ २९०. तस्सेस मग्गो गुरु-विद्ध-सेवा, विवज्जणा बाल-जणस्स दूरा। सज्झाय-एगंत-निवेसणा य, सुत्तत्थ-संचिंतणया धिई य॥ गुरु तथा वृद्धों (स्थविर मुनियों) की सेवा करना, अज्ञानीजनों का दूर से ही वर्जन करना, स्वाध्याय करना, एकांत वास करना,, सूत्र और अर्थ का सम्यक् चिंतन करना तथा धैर्य रखना यह मोक्ष का मार्ग है। २९१. आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थ-बुद्धिं। निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं, . समाहि-कामे समणे तवस्सी॥ समाधि चाहने वाला तपस्वी श्रमण परिमित तथा एषणीय आहार की इच्छा करे, साधना में निपुण बुद्धि वाले गीतार्थ को सहायक बनाए, विविक्त (स्त्री, पशु, नपुंसक से रहित) स्थान में रहे। २९२. हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा। जो हित-मित-अल्प आहार करते हैं, उनकी न ते विज्जा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा॥ चिकित्सा वैद्य क्या करेगा? वे स्वयं अपने चिकित्सक हैं। २९३. रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं। ...दितं च कामा समभिहवंति, दुमं जहा साउ-फलं व पक्खी ॥ रसों का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। वे प्रायः मनुष्य की धातुओं को उद्दीप्त करते हैं। जिसकी धातुएं उद्दीप्त हैं उसे काम-भोग सताते हैं, जैसे स्वादिष्ट फल वाले वृक्ष को पक्षी। २९४. विवित्त-सेज्जाऽऽसण-जंतियाणं, ओमाऽसणाणं दमिइंदियाणं। न राग-सत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं॥ जो विविक्त शय्या और आसन से नियंत्रित होते हैं, अल्प आहारी हैं, और जितेन्द्रिय होते हैं उनके चित्त को राग-शत्रु वैसे ही पराजित नहीं कर सकते जैसे औषधि से पराजित व्याधि देह को। २९५. जरा जाव न पीलेइ, वाही जाव न वडढई। जाविंदिया न हायंति, ताव धम्मं समायरे॥ जब तक बुढापा पीड़ित न करे, व्याधि न बढे, और इन्द्रियां क्षीण न हो, तब तक धर्म का आचरण करे। द्विविध धर्म सूत्र द्विविध धर्म सूत्र २९६. दो चेव जिणवरेहि, जाइ-जर-मरण-विप्पमुक्केहि। . लोगम्मि पहा भणिया, सुस्समण सुसावगो वा वि॥ जन्म, जरा और मरण से मुक्त अर्हतों ने इस लोक में दो मार्ग बतलाए हैं-एक है उत्तम श्रमणों का और दूसरा है उत्तम श्रावकों का।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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