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________________ समणसुत्तं ६८३ अ. २ : मोक्षमार्ग २३९. नाणेणे देसणेणं च चरित्तेणं तहेव य। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, शांति (क्षमा) एवं मुक्ति . खंतीए मुत्तीए, वड्ढमाणो भवाहि य॥ (निर्लोभता) के द्वारा आगे बढ़ना चाहिए-जीवन को वर्धमान बनाना चाहिए। (यह उपबंहण सम्यग्दृष्टि है)। २४०. जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, कारण वाया अदु माणसेणं। तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा, आइन्नओ खिप्पमिवक्खलीणं॥ जहां कहीं भी मन, वचन तथा काया को दुष्प्रवृत्त होता हुआ देखे, तो ज्ञानी पुरुष वहीं सम्हल जाए, जैसे जातिमान् अश्व लगाम के खींचते ही सम्हल जाता है। २४१. तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए, ' समयं गोयम! मा पमायए॥ तू महासागर को तो पार कर गया, अब तट के निकट पहुंच कर क्यों खड़ा है ? उसे पार करने में शीघ्रता कर। हे गौतम! क्षणभर का भी प्रमाद मत कर। (यह स्थिरीकरण सम्यग्दृष्टि है।) २४२. जो धम्मिएसु भत्तो, जो धार्मिक जनों में भक्ति (अनुराग) रखता है, परम अणुचरणं कुणदि परम-सद्धाए। श्रद्धापूर्वक उनका अनुसरण करता है तथा प्रिय वचन पिय-वयणं जपंतो, बोलता है, वह भव्य वात्सल्य सम्यग्दृष्टि से सम्पन्न होता __वच्छल्लं तस्स भव्वस्स॥ है। २४३. मम्मकहा-कहणेण य, धर्मकथा के कथन द्वारा और निरवद्य वाह्य-योग बाहिर-जोगेहिं चावि अणवज्जे। विशिष्ट तपस्या के द्वारा तथा जीवों पर दया व अनुकंपा धम्मो पहाविदव्वो, के द्वारा धर्म की प्रभावना करनी चाहिए। (यह प्रभावना जीवेसु दयाणुकंपाए॥ सम्यग्दृष्टि है)। .२४४. पावयणी धम्मकही, ___प्रवचन-कुशल, धर्मकथा करने वाला, वादी, निमित्तवाई नेमित्तिओ तवस्सी य। शास्त्र का ज्ञाता, तपस्वी, विद्यावान्, ऋद्धि-सिद्धियों का विज्जा सिद्धो य कवी, स्वामी और कवि-ये आठ पुरुष धर्म-प्रभावक कहे गए हैं। अठेव पभावगा भणिया॥ सम्यग्ज्ञान सूत्र सम्यग्ज्ञान सूत्र २१५. सोच्चा जाणइ कल्लाणं.सोच्चा जाणइ पावगं। मनुष्य सुनकर ही कल्याण को जानता है और उभयं पि जाणइ सोच्चा, जे छेयं तं समायरे॥ सुनकर ही पाप को जानता है। कल्याण और पाप सुनकर ही जाने जाते हैं। वह इन दोनों में जो श्रेष्ठ है उसी का आचरण करे। २४६. णाणाऽऽणत्तीए पुणो, दसण-तव-नियम-संजमे ठिच्चा। ' विहरह विसुन्झमाणो, जावज्जीवं पि निक्कंपो॥ ज्ञान के आदेश द्वारा सम्यग्दर्शन मूलक तप, नियम, संयम में स्थित होकर कर्ममल से विशुद्ध (संयमी साधक) जीवन पर्यन्त निष्कंप (स्थिरचित्त) होकर विहार करता है।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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