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समणसुत्तं
२२२. सम्मत्त - विरहिया णं,
लहंति बोहि-लाहं,
अवि वास - सहस्स- कोडीहिं ।
२२३. दंसण-भट्ठा भट्ठा,
सुठु वि उग्गं तवे चरंता णं ।
दंसण-भट्ठस्स णन्थि णिव्वाणं ।
सिज्झति चरिय भट्ठा,
२२४. दंसण-सुद्धो सुद्धो,
२२५. सम्मत्तस्स य लंभो,
दंसण- विहीण पुरिसो,
२२६. किंबहुणा भणिएणं,
दंसण-भट्ठा ण सिज्झति ॥
दंसण-सुद्धो लहेइ णिव्वाणं ।
न लहइ तं इच्छियं लाहं ॥
तेलोक्कस्स म हवेज्ज जो लंभो । सम्मइंसणलंभो, वरं खु तेलोक्क - लंभादो ॥
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जे सिद्धा णरवरा गए काले । सिज्झिहिंति जे वि भविया,
तं जाणह सम्म माहप्पं ॥
२२७. जह सलिलेण ण लिप्पइ,
२२९. सेवतो वि ण सेवइ,
कमलिणी-पत्तं सहाव-पयडीए । तह भावेण ण लिप्पइ,
कसाय विसएहिं सप्पुरिसो ॥
२२८. उवभोगमिंदिये हिं, दव्वाणमचे दणाणमिदराणं । जं कुणदि सम्मदिट्ठी, तं सव्वं णिज्जर - णिमित्तं ॥
असेवमाणो वि सेवगो कोई ।
पगरण - चेट्ठा कस्स वि,
णय पायरणो त्ति सो होई ॥
अ. २ : मोक्षमार्ग
सम्यक्त्व-विहीन व्यक्ति हजार करोड़ वर्षों तक भलीभांति उग्र तप करने पर भी बोधिलाभ प्राप्त नहीं करता ।
जो सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट हैं वे ही भ्रष्ट हैं। दर्शन- भ्रष्ट को निर्वाण प्राप्त नहीं होता । चरित्र विहीन ( वेष और चर्या विहीन- व्यवहार चारित्र विहीन ) सम्यग् दृष्टि सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं, किंतु सम्यग्दर्शन से रहित सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते।
जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है वही शुद्ध है। सम्यक् दर्शन - शुद्ध पुरुष को ही निर्वाण प्राप्ति होती है। सम्यग्दर्शन विहीन पुरुष उस निर्वाण रूपी इष्ट लाभ को प्राप्त नहीं कर सकता ।
एक ओर सम्यग्दर्शन का लाभ और दूसरी ओर त्रैलोक्य के ऐश्वर्य का लाभ हो तो त्रैलोक्य के ऐश्वर्य के लाभ से सम्यग्दर्शन का लाभ श्रेष्ठ है।
अधिक क्या कहें? अतीत काल में जो श्रेष्ठ जन सिद्ध हुए हैं और जो आगे सिद्ध होंगे, वह सम्यक्त्व का माहात्म्य है।
जैसे कमलिनी का पत्र स्वभाव से ही जल से लिप्त नहीं होता, वैसे ही सत्पुरुष सम्यक्त्व के प्रभाव से अंतःकरण में कषाय और विषयों से लिप्त नहीं होता ।
सम्यग्दृष्टि मनुष्य अपनी इन्द्रियों के द्वारा चेतन तथा अचेतन द्रव्यों का जो भी उपभोग करता है, वह सब कर्मों की निर्जरा में सहायक होता है।
कोई पुरुष (राग-द्वेष से अलिप्स) विषयों का सेवन करते हुए भी उनका सेवन नहीं करता, और कोई (राग - द्वेष लिप्स) विषयों का सेवन न करते हुए भी उनका सेवन करता है, जैसे कोई कर्मचारी व्यवसाय कार्य में लगा रहने पर भी कर्मचारी कार्य का स्वामी नहीं होता ।