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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-५
अप्रमाद सूत्र
अप्रमाद सूत्र १६०. इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि,
इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं। तं एवमेवं लालप्पमाणं,
हरा हरन्ति त्ति कहं पमाए?
(सम्भूत ने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती से कहा-) 'यह मेरे . पास है और यह नहीं है, यह मुझे करना है और यह नहीं करना है-इस प्रकार प्रलाप करते हुए पुरुष को उठाने वाला (काल) उठा लेता है। इस स्थिति में प्रमाद कैसे .. किया जाए?
१६१. सीतंति सुवंताणं,
अत्था पुरिसाण लोगसारत्था। तम्हा जागरमाणा,
विधुणध पोराणयं कम्म॥
लोक में ज्ञान आदि सारभूत अर्थ हैं। जो पुरुष सोते हैं उनके वे अर्थ नष्ट हो जाते हैं। अतः सतत जागृत रहकर पूर्वार्जित कर्मों (ज्ञान आदि के आवरणों) को प्रकंपित करो।
१६२. जागरिया धम्मीणं, आहम्मीणं च सुत्तया सेया।
वच्छाहिव-भगिणीए, अकहिंसु जिणो जयंतीए॥
'धार्मिकों का जागना श्रेयस्कर है और अधार्मिकों का सोना श्रेयस्कर है'-ऐसा भगवान् महावीर ने वत्सदेश के राजा शतानीक की बहन जयन्ती से कहा था।
१६३. सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी,
न वीससे पंडिए आसुपण्णे। घोरा मुहुत्ता अबलं शरीरं,
भारुंड-पक्खी व चरप्पमत्तो॥
आशप्रज्ञ पण्डित सोए हुए व्यक्तियों के बीच भी । जागृत रहे। प्रमाद में विश्वास न करे। मुहूर्त (काल) बड़े घोर (निर्दयी) होते हैं। शरीर दुर्बल है, इसलिए तू भारण्ड पक्षी की भांति अप्रमत्त होकर विचरण कर।
१६४. पमायं कम्ममाहंसु, अप्पमायं तहाऽवरं।
तब्भावादेसओ वावि, बालं पंडियमेव वा॥
प्रमाद को कर्म (आस्रव) और अंप्रमाद को अकर्म (संवर) कहा है। प्रमाद की अपेक्षा से मनुष्य बाल (अज्ञानी) होता है। अप्रमाद की अपेक्षा से वह पण्डित (ज्ञानी) होता है।
१६५. न कम्मुणा कम्म खवेति बाला.
अकम्मुणा कम्म खति धीरा। मेधाविणो लोभ-मया वतीता,
संतोसिणो नो पकरेंति पावं॥
मेधावियो लोप भजाम्बुमा काम खति
अज्ञानी पुरुष कर्म-प्रवृत्ति के द्वारा कर्म का क्षय होना मानते हैं किन्तु वे कर्म के द्वारा कर्म का क्षय नहीं कर सकते। धीर पुरुष अकर्म (संवर या निवृत्ति) के द्वारा कर्म का क्षय करते हैं। मेधावी पुरुष लोभ और मद से अतीत तथा संतोषी होकर पाप नहीं करते।
१६६. सव्वओ पमत्तस्स भयं,
प्रमत्त को सब ओर से भय होता है। अप्रमत्त को सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं। किसी ओर से भय नहीं होता।
१६७. नाऽऽलस्सेण समं सुक्खं, न विज्जा सह निहया।
न वेरग्गं ममत्तेणं, नारंभेण दयालया॥
आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु विद्याभ्यासी नहीं हो सकता, ममत्व रखने वाला वैराग्यवान् नहीं हो सकता, और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। '