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आत्मा का दर्शन
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खण्ड-५
१०७. सुहं वसामो जीवामो, जेसिं मो नत्थि किंचण।
मिहिलाए डझमाणीए, न मे डज्झइ किंचण॥
(नमि राजर्षि ने इन्द्र से कहा-) 'हम लोग, जिनके पास अपना कुछ भी नहीं है, सुख पूर्वक रहते हैं और सुखपूर्वक जीते हैं। मिथिला जल रही है, उसमें मेरा कुछ भी नहीं जल रहा है।'
१०८. चत्त-पुत्त-कलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो। पुत्र और स्त्रियों से मुक्त तथा व्यवसाय से निवृत्त पियं न विज्जई किंचि,अप्पियं पि न विज्जए॥ भिक्षु के लिए कोई वस्तु प्रिय भी नहीं होती और अप्रिय
भी नहीं होती।
१०९. जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा।
एवं अलितं कामेहि, तं वयं बूम माहणं॥
(जयघोष मुनि ने कहा-) "जिस प्रकार जल में उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं होता, इसी प्रकार काम के वातावरण में उत्पन्न हुआ जो मनुष्य उससे लिप्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते है। .
११०. दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो,
___ जिसके मोह नहीं है, उसने दुःख का नाश कर दिया। ___ मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा। जिसके तृष्णा नहीं है, उसने मोह का नाश कर दिया। तण्हा हया जस्स न होइ लोहो,
जिसके लोभ नहीं है, उसने तृष्णा का नाश कर दिया। लोहो हओ जस्स न किंचणाई॥ जिसके पास कुछ नहीं है, उसने लोभ का नाश कर दिया।
१११.जीवो बंभ जीवम्मि,
आत्मा ही ब्रह्म है। उस (ब्रह्म) में चर्या-रमण करना चेव चरिया हविज्ज जा जदिणो। वही ब्रह्मचर्य है। जो संयमी है और देहासक्ति से मुक्त. तं जाण बंभचेरं,
होता है, उसी के ब्रह्मचर्य होता है। यही उत्तम ब्रह्मचर्य विमुक्क-परदेह-तित्तिस्स॥ धर्म होता है।
११२. सव्वंगं पेच्छंतो, इत्थीणं तासु मुयदि दुब्भावं।
सो बम्हचेरभावं, सुक्कदि खलु दुद्धरं धरदि॥
स्त्रियों के सर्वांगों को देखते हुए भी उनमें दुर्भाव नहीं करता-विकार को प्राप्त नहीं होता, वही वास्तव में दुर्द्धर ब्रह्मचर्यभाव को धारण करता है।
११३. जउकुंभे जोइसुवगूढे,आसुभितत्ते नासमुवयाइ।,
एवित्थियाहिं अणगारा, संवासेण नासमवयंति॥
जैसे अग्नि के पास रखा हुआ लाख का घड़ा तप्त होने पर शीघ्र ही नष्ट होता है, वैसे ही स्त्री के निकट संपर्क में रहने वाला ब्रह्मचारी नष्ट हो जाता है।
११४. एए य संगे समइक्कमित्ता,
जो मनुष्य इन काम विषयक आसक्तियों का पार पा सुदुत्तरा चेव भवंति सेसा।। जाता है, उसके लिए शेष सारी आसक्तियां वैसे ही सुख जहा महासागरमुत्तरित्ता,
से पार पाने योग्य हो जाती हैं, जैसे महासागर का पार पा नई भवे अवि गंगासमाणा॥ जाने पर गंगा जैसी बड़ी नदी।