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समणसुत्तं
• धर्म सूत्र ८२. धम्मो मंगलमुकिटं, अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥
अ. १ : ज्योतिर्मुख
धर्म सूत्र धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं।
८३.धम्मो वत्थु-सहावो,
खमादि-भावो य दसविहो धम्मो। रयणत्तयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो॥
वस्तु का स्वभाव धर्म है। दशविध-क्षमा आदि भाव धर्म है। रत्नत्रय (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र) धर्म है। जीवों की रक्षा अहिंसा धर्म है।
८४. उत्तमखम-महवज्जव-सच्च-सउचं च संजमं चेव।
तव-चाग-मकिंचण्हं, बम्ह इदि दसविहो धम्मो॥
उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य तथा उत्तम ब्रह्मचर्य-ये दस धर्म है।
८५.कोहेण जो ण तप्पदि,
. सुर-णर तिरिएहि कीरमाणे वि। उवसग्गे वि रउद्दे, तस्स खमा णिम्मला होदि॥
देव, मनुष्य और तिर्यंचों (पशुओं) के द्वारा घोर व भयानक उपसर्ग करने पर भी जो क्रोध से तप्त नहीं होता, उसके निर्मल क्षमाधर्म होता है। (यही उत्तम क्षमाधर्म है।)
८६.खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे, जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झं ण केण वि॥
मैं सब जीवों को क्षमा करता हूं। सब जीव मुझे क्षमा करें। मेरा सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव है। मेरा किसी से भी वैर नहीं है।
८७.जइ किंचि पमाएणं,न सुठु भे वट्टियं मए पुव्विं। अल्पतम प्रमादवश भी यदि मैंने आपके प्रति उचित तंभे खामेमि अहं, निस्सल्लो निक्कसाओ अ॥ व्यवहार नहीं किया हो तो मैं निःशल्य और कषायरहित
होकर आपसे क्षमायाचना करता हूं।
८८.कुल-रूव-जादि-बुद्धिसु,
तव-सुद-स वं किंचि। जो णवि कुव्वदि समणो,
महव-धम्म हवे तस्स॥
जो श्रमण कुल, रूप, जाति, बुद्धि, तप, श्रुत और शील का तनिक भी गर्व नहीं करता, उसके उत्तम मार्दव धर्म होता है।
८९.जो अवमाण-करणं, दोसं परिहरइ णिच्चमाउत्तो।
सो णाम होदि माणी, ण दु गुणचत्तेण माणेण॥
जो पुरुष अपमान के कारणभूत दोषों का त्याग कर निर्दोष प्रवृत्ति करता है, वही सच्चा मानी है। किन्तु गुणशून्य होकर अभिमान करने से कोई मानी नहीं होता।
९०.से असइं उच्चागोए असई नीआगोए.
यह पुरुष अनेक बार उच्च गोत्र और नीच गोत्र का नो हीणे नो अइरित्ते।।
अनुभव कर चुका है। अतः न कोई हीन है और न कोई नोऽपीहए इति संखाए,
अतिरिक्त, (इसलिए वह उच्च गोत्र की) स्पृहा न करे। के गोयावाई के माणावई॥
(यह पुरुष अनेक बार उच्च गोत्र और नीच गोत्र का