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आत्मा का दर्शन
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४२. निच्छयओ दुण्णेयं, को भावे कम्मि वट्टई समणो । ववहारओ उ कीरइ, जो पुव्वट्ठिओ चरित्तम्मि॥
४३. तम्हा सव्वे वि णया,
मिच्छादिट्ठी सपक्ख पडिबद्धा । अन्नोन्न- णिस्सिया उण,
हवंति सम्मत्त सब्भावा ॥
४४. कज्जं णाणादीयं, उस्सग्गाववायओ भवे सच्चं । तं तह समायरंतो, तं सफलं होइ सव्वं पि ॥
संसारचक्र सूत्र
४५. अधुवे असासयम्मि,
किं नाम होज्ज तं कम्मयं,
संसारम्मि दुक्ख-पउराए ।
जेणाऽहं दोग्गइं न गच्छेज्जा ? ॥
४६. खणमेत्त - सोक्खा बहुकाल - दुक्खा,
पगाम- दुक्खा अणिगाम - सोक्खा ॥ संसार- मोक्खस्स विपक्खभूया,
खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥
४७. सुठुवि मग्गिज्जंतो,
कत्थ वि केलीइ नत्थि जह सारो ।
नत्थ सुहं सुट्ठं विगविट्ठे ॥
इंदिअ-विसएसुतहा,
४८. नरविबुहेसर - सुक्खं, दुक्खं परमत्थओ तयं बिंति । परिणाम- दारुणमसासयं च जं ता अलं तेण ॥
४९. जह कच्छुल्लो कच्छु,
कंडुयमाणो दुहं मुणइ सुक्खं । मोहाउरा मणुस्सा, तह काम दुहं सुहं बिंति ॥
खण्ड - ५
निश्चय नय से यह जानना कठिन है कि कौन श्रमण किस भाव में स्थित है, अतः जो चारित्र पर्याय में पहले से स्थित है, उन्हें वन्दना की जाती है यह व्यवहार नय के आधार पर होने वाला आचरण है।
अतः अपने-अपने पक्ष का आग्रह रखनेवाले सभी नय मिथ्या हैं और परस्पर सापेक्ष होने पर वे ही सम्यक्भाव को प्राप्त हो जाते हैं।
ज्ञान आदि कार्य उत्सर्ग ( सामान्य विधि) और अपवाद (विशेष विधि) दोनों के समन्वित प्रयोग से सत्य होते हैं। वे इस तरह किये जाएं कि सब कुछ सफल हो।'
संसारचक्र सूत्र
(कपिल मुनि ने चोरों से कहा-) 'अध्रुव, अशाश्व और दुःख - बहुल संसार में ऐसा कौन सा कर्म अनुष्ठान है, जिससे मैं दुर्गति मैं. न जाऊं ?"
(भृगु पुत्रों ने अपने पिता से कहा - ) 'ये काम भोग क्षणभर सुख और चिरकाल तक दुःख देने वालें हैं, बहुत दुःख और थोड़ा सुख देने वाले हैं, संसार- मुक्ति के विरोधी और अनर्थों की खान हैं।
बहुत खोजने पर भी - केले के तने के छिलके उतरते रहने पर भी जैसे उसके भीतर पेड़ में छिलके के अतिरिक्त कोई सार नहीं निकलता, वैसे ही इन्द्रियविषयों में बहुत खोजने पर भी उनका बार-बार सेवन करने पर भी उनमें कोई सुख उपलब्ध नहीं होता ।
नरेन्द्र, सुरेन्द आदि का सुख परमार्थतः दुःख ही है। उसका परिणाम दारुण होता है, और वह सुख अशाश्वत है । फिर हमें उस सुख से क्या ?
खुजली का रोगी जैसे खुजलाने पर दुःख को भी सुख मानता है, वैसे ही मोहातुर मनुष्य कामजन्य दुःख को भी सुख मानता है।