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प्रायोगिक दर्शन
अ. १५ : अनेकांतवाद भवइ य, भविस्सइ य-धुवे, नितिए, सासए, में है और भविष्य में होगा। वह ध्रुव है, नियत है, शाश्वत अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे।
है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है। असासए जीवे जमाली! जण्णं नेरइए भवित्ता जमाली! जीव अशाश्वत है-वह नैरयिक योनि से तिरिक्खजोणिए भवइ, तिरिक्खजोणिए भवित्ता तिर्यंच योनि में जाता है, तिर्यंच से मनुष्य बनता है और मणुस्से भवइ, मणुस्से भवित्ता देवे भवइ।
मनुष्य से देव बनता है।
पुद्गल का परिणमन
राजा जितशत्रु : अमात्य सुबुद्धि १२.तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी- राजा जितशत्रु ने अमात्य सुबुद्धि से कहा-देवानुप्रिय
अहो णं देवाणुप्पिया सुबुद्धी! इमे मणुण्णे असण- सुबुद्धि! यह अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य मनोज्ञ है यावत् पाण-खाइम-साइमे जाव सव्विंदियगाय- सब इन्द्रियों को प्रह्लादित करनेवाला है। पल्हायणिज्जे। तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स रण्णो एयमढं नो अमात्य सुबुद्धि ने राजा जितशत्रु के इस कथन का न आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ। आदर किया और न अनुमोदन ही किया। मौन रहा। तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिं दोच्चंपि तच्चंपि एवं राजा जितशत्रु ने अमात्य सुबुद्धि को दूसरी-तीसरी वयासी-अहो णं देवाणुप्पिया सुबुद्धी! इमे मणुण्णे बार भी कहा-देवानुप्रिय सुबुद्धि ! यह अशन, पान, खाद्य, असण-पाण-खाइम-साइमे जाव सव्विंदियगाय- स्वाद्य मनोज्ञ है यावत् सब इन्द्रियों को प्रह्लादित करने पल्हायणिज्जे।
वाला है। तए णं से सुबुद्धी अमच्चे जियसत्तुणा रण्णा राजा जितशत्रु के दूसरी-तीसरी बार ऐसा कहने पर दोच्चंपि तच्चं पि वुत्ते समाणे जियसत्तुं रायं एवं सुबुद्धि ने कहा-स्वामिन् ! अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य की वयासी-नो खलु सामी! अम्हं एयंसि मणुण्णंसि मनोज्ञता पर हमें कोई विस्मय नहीं है। असण-पाण-खाइम-साइमंसि केइ विम्हए। एवं खलु सामी! सुन्भिसहा वि पोग्गला स्वामिन् ! अच्छे शब्दवाले पुद्गल बुरे शब्द के रूप दुन्भिसहत्ताए परिणमंति। दुब्भिसद्दा वि पोग्गला में परिणत हो जाते हैं और बुरे शब्दवाले पुद्गल अच्छे सुभिसहत्ताए परिणमंति। सुरुवा वि पोग्गला ____ शब्द के रूप में परिणत हो जाते हैं। सुरूप पुद्गल दरूवत्ताए परिणमंति। दरूवा वि पोग्गला कुरूपता में परिणत हो जाते हैं और कुरूप पुद्गल सुरूवत्ताए परिणमंति। सुन्भिगंधा वि पोग्गला सुरूपता में परिणत हो जाते हैं। सुगंधित पुद्गल दुर्गध दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति। दुब्धिगंधा वि पोग्गला रूप में परिणत हो जाते हैं और दुर्गंधित पुद्गल सुगंध सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति। सुरसा वि पोग्गला रूप में परिणत हो जाते हैं। सुरस पुद्गल दुरस रूप में दरसत्ताए परिणमंति। दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए परिणत हो जाते हैं और दुरस पुद्गल सुरस रूप में परिणमंति। सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणत हो जाते हैं। सुख स्पर्श वाले पुद्गल दुःख स्पर्श परिणमंति। दहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए के रूप में परिणत हो जाते हैं और दुख स्पर्शवाले पुद्गल परिणमंति। पओगवीससा-परिणया वि य णं सुख स्पर्श रूप में परिणत हो जाते हैं। स्वामिन् ! पुद्गलों सामी! पोग्गला पण्णत्ता।
का यह परिणाम प्रयोग से भी होता है और स्वभाव से भी
होता है। तए णं जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स राजा जितशत्रु ने अमात्य सुबुद्धि के इस कथन का न एवमाइक्खमाणस्स भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स आदर किया और न अनुमोदन ही किया। मौन रहा।