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________________ . प्रायोगिक दर्शन ६४९ अण्णमण्णस्सं अंतिए एयमठ्ठे पडिसुणंति, पडिसुणित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पण्णवेति, तं जहाधम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं । ..... से कहमेयं गोयमा ! एवं ? नए णं से भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-नो खलु वयं देवाणुप्पिया ! अत्थि भावं नत्थि त्ति वदामो, नत्थि भावं अत्थि त्ति वदामो । अम्हे णं देवाणुप्पिया ! सव्वं अत्थिभावं अत्थि त्ति वदामो। सव्वं नत्थिभावं नत्थि त्ति वदामो । ८. आया भंते! दुपएसिए खंधे ? अण्णे दुपएसिए खंधे ? गोयमा! दुपएसिए खंधे— १. सिय आया २. सिय नोआया ३. सिय अवत्तव्वं - आयाति य नोआयाति य । सेकेणट्ठेणं भंते ?......... गोयमा ! अप्पणो आदिट्ठे आया, परस्स आदिट्ठे नोआया, तदुभयस्स आदिट्ठे अवत्तव्वं दुपएसिए खंधेआयाति य नोआयाति य । ९. सत्तेवहुति भंग सिय सावेक्खं पमाणं अव्यत्तव्वा ते तह १०. अत्थित्ति णत्थि दोवि य त्रिभंगी पमाणणयदुणयभेदजुत्तो वि । 'णण णय दुण्णय णिरवेक्खा ॥ अ. १५ : अनेकांतवाद मंत्र कर वे गौतम के पास आए और पूछने लगे- आपके धर्माचार्य, धर्मगुरु, श्रमण ज्ञातपुत्र पांच अस्तिकाय का प्रज्ञापन करते हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय । यह कैसे ? गौतम ने उनसे कहा- देवानुप्रिय ! हम अस्तित्व को नास्तित्व नहीं कहते और नास्तित्व को अस्तित्व नहीं कहते । देवानुप्रिय ! हम संपूर्ण अस्तिभाव को अस्तित्व कहते हैं और संपूर्ण नास्तिभाव को नास्तित्व कहते हैं। अव्वत्तव्वं सिएण संजुत्तं । पमाणभंगी मुणेयव्वा॥ सप्तभंगी भंते! क्या द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा है-उसका अस्तित्व है अथवा अन्य है-उसका नास्तित्व है ? गौतम ! द्विप्रदेशी स्कंध १. कथंचित् आत्मा है, उसका अस्तित्व है। २. कथंचित् आत्मा नहीं है, उसका अस्तित्व नहीं है। ३.. कथंचित् अवक्तव्य है, उसका युगपत् अस्तित्व भी है, नास्तित्व भी है। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है ? गौतम ! १. स्वद्रव्य स्वपर्याय की अपेक्षा उसका अस्तित्व है । २. परद्रव्य अथवा परपर्याय की अपेक्षा उसका अस्तित्व नहीं है। ३. एक साथ दोनों की अपेक्षा से अवक्तव्य है- उसका स्वद्रव्य अथवा स्वपर्याय की अपेक्षा अस्तित्व है। परद्रव्य अथवा परपर्याय की अपेक्षा नास्तित्व है। प्रमाण, नय और दुर्नय के भेद से वस्तु प्रतिपादन के सात भंग होते हैं। स्यात् सापेक्ष वचन प्रमाण है। एक धर्म अथवा पर्याय का प्रतिपादन करने वाला सापेक्ष वचन नय है। एक धर्म अथवा पर्याय का प्रतिपादन करनेवाला निरपेक्ष वचन दुर्नय है। स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, स्यात् अस्ति नास्ति, स्यात् अवक्तव्य, स्यात् अस्ति अवक्तव्य, स्यात् नास्ति अवक्तव्य, स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य - ये सात प्रमाण के भंग हैं।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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