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अनेकांतवाद
१. जेण विणा लोगस्स वि ववहारो सव्वहा न निव्वडइ । तस्स भुवणेक्कगुरुणो णमो अणेगंतवायस्स ॥
२. से नूणं भंते! अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ ? अधिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ ?
हंता गोयमा ! अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ। अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ ।
३. जीवे णं भंते! सया समितं एयति वेयति चलति फंदर घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ ?
जीव का परिणमन
हंता मंडियपुत्ता ! जीवे णं सया समितं एयति • वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणम |
सोमिल के प्रश्न
४. एगे भवं ? दुवे भवं ? अक्खए भवं ? अव्वए भवं ? अवट्ठिए भवं ? अणेगभूय-भाव-भविए भवं ?
सोमिला ! एगे वि अहं जाव अगभूय-भाव भविए वि अहं ।
जिसके बिना लोक का व्यवहार भी नहीं चल सकता विश्व के उस एक मात्र गुरु अनेकांतवाद को प्रणाम ।
सेकेणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ - एगे वि अहं जाव अगभूय-भाव-भवि वि अहं ?
भंते! क्या अस्थिर में परिवर्तन होता है, स्थिर में परिवर्तन नहीं होता? क्या अस्थिर भग्न होता स्थिर भग्न नहीं होता ?
हां गौतम ! अस्थिर में परिवर्तन होता है, स्थिर में परिवर्तन नहीं होता। अस्थिर भग्न होता है, स्थिर भग्न नहीं होता।
भंते! क्या जीव सदा प्रतिक्षण एजन (कम्पन) वेजन (प्रकंपन) करता ? एक स्थान से दूसरे स्थान में चलित होता है? स्पंदन करता है ? पदार्थांतर का स्पर्श करता है ? पृथ्वी में प्रविष्ट होता है ? अन्य पदार्थों को चलित करता है और नाना अवस्थाओं में परिणमित होता है।
हां मंडितपुत्र! जीव सदा प्रतिक्षण एजन-वेजन करता है। एक स्थान से दूसरे स्थान में चलित होता है | स्पंदन करता है। पदार्थांतर का स्पर्श करता है। पृथ्वी में प्रविष्ट होता है। अन्य पदार्थों को चलित करता है और नाना अवस्थाओं में परिणमित होता है।
भंते! आप एक हैं ? दो हैं ? अक्षय हैं ? अव्यय हैं ? अवस्थित हैं ? भूत, वर्तमान और भविष्य संबंधी अनेक अवस्थाओं के धारक हैं ?
सोमिल! मैं एक भी हूं, दो भी हूं, अक्षय भी हूं, अव्यय भी हूं, अवस्थित भी हूं और भूत, वर्तमान एवं भविष्य संबंधी अनेक अवस्थाओं का धारक भी हूं।
भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-मैं एक भी हूं यावत् भूत, वर्तमान और भविष्य संबंधी अनेक